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एकला चलो रे. खलील जिब्रान ने लिखा है---'मैंने कुछ क्षणों में क्षुद्रता का अनुभव किया । जब अपराध किया और अपराध का समर्थन करने के लिए पाप-पक्ष का समर्थन किया तब क्षुद्रता का अनुभव किया।'
गलती हो जाना, पाप हो जाना, अपराध हो जाना एक बात है, उतनी क्षुद्रता नहीं है। एक आदमी कोई अपराध करता है, गलती करता है, उस क्षण में वह सचमुच क्षुद्र बन जाता है यह होता है दुनिया में । एक आदमी गलती करता है, प्रमाद करता है, कोई कहे कि तुमने गलती की तो वह उसे स्वीकार करना नहीं चाहेगा। तत्काल यह तर्क सामने आएगा कि क्या बुरा किया मैंने ? क्या यह काम बुरा है ? कोई बुरा नहीं है। तुम नहीं समझते हो । अब तक जिस परिस्थिति में मैंने वह व्यवहार किया, वह आचरण किया, उस स्थिति में ऐसा करना ही चाहिए। जब यह समर्थन होने लगता है उस क्षण में आदमी सचमुच क्षुद्र बन जाता है। ___ 'जब मैंने दुर्बल व्यक्तियों के सामने दर्प का प्रदर्शन किया तब मैंने अपनी क्षुद्रता का अनुभव किया।' ___ सामने कोई बड़ा होता है, उसके सामने दर्प का प्रदर्शन नहीं हो सकता।' छोटा आदमी कोई सामने आया, उसके सामने दर्प का प्रदर्शन किया। दुर्बल व्यक्ति के सामने तुमने इतने अहंकार का प्रदर्शन किया तो उसमें तुम्हारी क्षुद्रता ही प्रकट होगी, कोई महानता प्रकट नहीं होगी। ___ मैंने कुरूपता से घृणा की। इस सचाई को तो मैं भूल गया कि घृणा की प्रतिच्छाया का नाम ही कुरूपता है । जिस क्षण मैंने कुरूपता से घृणा की, उस क्षण मुझे अपनी क्षुद्रता का अनुभव हुआ।
हर व्यक्ति को कुछ क्षणों में क्षुद्रता का अनुभव होता है। यह क्षुद्रता का अनुभव ही महानता के मार्ग प्रशस्त करता है, महानता की दिशा में व्यक्ति को आगे बढ़ाता है। जब-जब क्षुद्रताएं समाप्त होती हैं तब-तब व्यक्ति अपने आप निखार पाने लग जाता है।
'मैंने कर्तव्य के मार्ग को छोड़कर सुख की पगडण्डी को चुना तब क्षुद्रता का अनुभव हुआ । हर व्यक्ति के सामने दो रास्ते होते हैं-एक राजमार्ग का रास्ता और एक पगडण्डी का रास्ता। कर्तव्य का रास्ता राजमार्ग होता है, दायित्व का रास्ता राजमार्ग होता है और अपनी सुख-सुविधा का रास्ता पगडंडी का रास्ता होता है । मैंने जब-जब अपने कर्त्तव्य के मार्ग को छोड़कर सुख-सुविधा का मार्ग चुना, सुख पाने की भावना जागी—पगडंडी चुनी तब
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