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एकला चलो रे
पिता होता है ? न माता न पिता, न कोई भाई। सारे सम्बन्ध छूट गए। भीतर के सम्बन्ध छूटते हैं तो बाहर के सारे सम्बन्ध छूट गए। कहना भी होता है। पहचान भी करानी होती है। स्मृति के कारण यो करता है--- मेरी संसारपक्षीया माता । यानी वर्तमान की नहीं। मैं जब संसार में था तब वह मेरी माता थी। मैं अतीत में बदल गया-जीते-जी। जन्म भी बदल गया । तो साधना का अपना जन्म होता है । साधना की अपनी मृत्यु होती है । जो व्यक्ति साधना के लिए चलता है उसका जन्म भी नया हो जाता है। मैं नहीं कहता कि शिविर की साधना करने वाले भी इस भावना को दोहराएंगे कि मेरी संसारपक्षीया माता और मेरी संसारपक्षीया पत्नी । किन्तु यह अवश्य कहना चाहता हूं कि जब आपने ध्यान का प्रयोग शुरू किया है, ध्यान का अभ्यास शुरू किया है तो कम-से-कम इतनी सचाई को तो स्वीकार करना होगा कि जिन सम्बन्धों को हम एक वास्तविकता मानकर चलते रहे हैं, उन सम्बन्धों के प्रति दृष्टि बदल जाए । यह परिवर्तन आए कि सम्बन्ध सम्बन्ध होता है और सत्य सत्य होता है। सत्य को सम्बन्ध न मानें और सम्बन्ध को सत्य न मानें । सम्बन्ध की सचाई व्यवहार की सचाई होती है और सत्य वास्तविक और स्वाभाविक होता है। ___ एकान्तवास की इतनी दृष्टि विकसित हो जाती है तो जीवन में आने वाली सर्दी और गर्मी, अनुकूलता और प्रतिकूलता, प्रियता और अप्रियताइन सारी की सारी परिस्थितियों को झेलने की क्षमता बढ़ जाती है, क्षमता विकसित होती है और उसके परिपार्श्व में हम हजारों-हजारों मानसिक समस्याओं, दुःखों और उलझनों से अपने आपको मुक्त कर सकते हैं ।
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