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________________ एकला चलो रे इस धागे के आधार पर हमने यह सम्बन्ध स्थापित किया है किन्तु यह प्रेम-स्नेह का धागा भी बहुत मजबूत धागा नहीं है और अन्तिम सचाई नहीं है । अन्तिम सचाई यह है कि 'मैं मैं' और 'तू तू'। बहुत कटु बात लग सकती है, अव्यावहारिक बात लग सकती है किन्तु हम इस सचाई को झुठला नहीं सकते। ठीक वह कहानी मुझे याद आ रही है। आदमी आकर बोला कि मियां साहब, आम आए हैं। मियां बोला-मुझे क्या ? आदमी बोला-आपके ही आये हैं। मियां बोला--तो तुझे क्या? हम झुठला नहीं सकते सचाई को । आखिर अपना अपना, पराया पराया। अपना अपना होता है, पराया पराया होता है । मेह वर्षा । खूब घनघोर वर्षा हुई । गड्ढों ने पानी को रोका। छोटीछोटो तलाइयों ने पानी को रोका। तालाबों ने पानी को रोका। फिर भी पानी, अपार पानी । जितना चाहा उतना रोका और बाकी को धक्का दिया, "निकाल दिया। बेचारा घूमता रहा, घूमता रहा । नदियों ने भी लिया, किन्तु शरण नहीं दी । आखिर बहते-बहते समुद्र के पास पहुंचा । तब पानी को अनुभव हुआ कि जिसको जितनी जरूरत है उतना लिया, बाकी बाहर धक्का दिया । क्योंकि अपना अपना, पराया पराया । यह सचाई है कि अपना अपना होता है, पराया पराया होता है। समुद्र पानी के लिए अपना है । समुद्र से पानी निकला और वापस समुद्र में चला गया। वही यदि शरण न दे तो कौन शरण दे सकता है ? ये सारे गड्ढे, तलाइयां, सरोवर पराये थे, जितनी जरूरत थी उतना पानी तो लिया और जरूरत पूरी हुई तो निकाल दिया। हम अकेलेपन की इस सचाई को न भूलें। चाहे कटु हो, चाहे अव्यावहारिक हो । जो इस सत्य को समझ लेता है वह सत्य को उपलब्ध हो सकता है, शांति को उपलब्ध हो सकता है और दुःखों से बच सकता है। एक बहुत बड़ा सूत्र है मनोबल को बढ़ाने का—'एकला चलो'। मैं यह नहीं कहता कि भीड़ के साथ मत चलो। चलना पड़ता है, चलना होगा। हम कभी भीड़ को नहीं छोड़ सकते । सम्बन्धों को सर्वथा नहीं तोड़ सकते। जब तक जीवन की यात्रा है, शरीर है, तब तक सम्बन्धों को नहीं तोड़ सकते । किन्तु जहां से हमारी साधना प्रारंभ होती है उसका पहला बिन्दु 'संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो'--कोई भिक्षु बना, साधना के लिए चला, अणगार बना, घर को छोड़ा जिसने, उसके लिए पहली बात यह होगी कि संयोग से मुक्त हो गया । न माता, न पिता । क्या मुनि के मां होती है ? क्या मुनि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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