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________________ १६० एकला चलो रे जाता है, दूसरा पीछे रह जाता है । पीछे वाला आगे बढ़ता है और आगे वाला पीछे रह जाता है । यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। गौणता और मुख्यता होती है, पर यदि एक पैर को नितान्त ही गौण कर दें, अगर हमारा यह आग्रह बन जाए कि बायां पैर ही निरन्तर आगे रहे, चलता रहे, क्योंकि ज्योतिषी बतलाते हैं, शकुन शास्त्री बतलाते हैं कि यात्रा करते समय बायां पैर ही आगे रहे निरन्तर, तो क्या आप चल पाएंगे ? क्या गति हो पाएगी? नहीं, अवरोध आएगा। कभी बाएं पैर को आगे रखने का आग्रह नहीं हो सकता। ___आपने देखा है बिलोना करने वाली महिला को। वह बिलोना करती है तो एक हाथ आगे जाता है और दूसरा पीछे चला जाता है । फिर पीछे वाला आगे आता है और आगे वाला पीछे हो जाता है। यह आग्रह हो जाए कि दाएं हाथ को ही आगे रखना है तो क्या मक्खन निकलेगा? कभी मक्खन आपको उपलब्ध नहीं होगा। ___गौण और मुख्य हमारी प्रवृत्ति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। किसी को गौण कर देना होता है और किसी को मुख्यता देनी होती है। हम इस बात को न भूलें कि जिसे गौणता दी है उसे ही मुख्यता देनी होगी, जिसे मुख्यता दी है उसे ही गौणता देनी होगी। तब जीवन की यात्रा सम्यक् प्रकार से चलेगी। यदि गौण और मुख्य को आग्रह बना लिया कि गौण को गौण ही रखना होगा और मुख्य को मुख्य ही रखना होगा तो जीवन का रथ ठीक अपनी गति से चल नहीं पाएगा। हमने व्यक्ति को सर्वथा गौण बना दिया। हमारी दृष्टि समाज पर अटक गई । समाज की सब कुछ है। हमारे सामने समाज है और समाज के सामने व्यक्ति को चाहे जैसे किया जा सकता है । मारा जा सकता है, काटा जा सकता है, कारागार में डाला जा सकता है, सब कुछ किया जा सकता है क्योंकि हमारा लक्ष्य है-समाज । समाज होना चाहिए, समाज की गति होनी चाहिए। समाज के सामने व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है। इतना निर्मूल्य व्यक्ति को बनाने का अर्थ ही आज स्वयं हमारे लिए समस्या बन गया है। साधना के क्षेत्र में यह दृष्टि हमारी कार्यकर नहीं हो सकती। जो व्यक्ति साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है, जो व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होना चाहता है, जो व्यक्ति दुःखों को कम करना चाहता है उसे सन्तुलन स्थापित करना होगा-व्यक्ति को इतनी गौणता नहीं दे सकता और अपने अकेलेपन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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