________________
एकला चलो रे
१८७
परम उपलब्धि है तो परम भय का कारण भी बनता है । साधक एकांतवार्स करे । अकेलेपन का अनुभव करे। आदमी इसलिए ज्यादा दुःखी है कि वह अकेला रहना नहीं जानता। अकेला रहना एक बड़ी कला है । हर व्यक्ति अकेला रहना नहीं जान सकता। जो व्यक्ति इस कला को जान लेता है वहीं व्यक्ति अकेला रह सकता है।
हम शांति चाहते हैं, आनन्द चाहते हैं, शक्ति चाहते हैं, सत्य को खोजना चाहते हैं । मैं पूछना चाहता हं-शान्ति कहां है ? आनन्द कहां है ? शक्ति कहां है ? सत्य कहां है ? क्या कोई दूसरे लोक में है ? कहीं नहीं । ये सारे के सारे हमारे आसपास में, हमारे चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं । शान्ति हमारे चारों ओर घूम रही है । सत्य हमारे दाएं-बाएं, आगे-पीछे, चारों ओर सत्य ही सत्य भरा पड़ा है। आनन्द के स्रोत हमारे पास में बह रहे हैं, तेज निर्भर प्रवाहित हो रहे हैं। सब हैं-शांति का स्रोत, शक्ति का स्रोत, आनंद का स्रोत, परम सत्य । सब हमारे आसपास हैं किन्तु हम देख नहीं पा रहे हैं और इसलिए नहीं देख पा रहे हैं कि हम बहुत व्यस्त हैं।
व्यस्त आदमी अकेला नहीं हो सकता। अकेला आदमी कभी व्यस्त नहीं हो सकता । किसी से भी कहा जाए कि ध्यान करो, साधना करो। वह कहेगा, समय कहां है ? बहुत व्यस्त हूं। कई बार मैं पूछ लेता हूं कि इतने ज्यादा व्यस्त हो तो क्या समय २० घंटे का होता है ? पूरे २४ घंटे का समय मिलता है, फिर इतनी व्यस्तता क्यों ? व्यस्तता का अर्थ होता है कि हम समय का ठीक नियोजन करना नहीं जानते । जो व्यक्ति समय का नियोजन करना जानता है, वह कभी व्यस्त नहीं होता। इस व्यस्तता की अनुभूति ने, इस व्यस्तता की भावना ने हमारी आंखों से इन सारी सचाइयों को ओझल कर दिया। एक बहुत बड़ा बहाना और आवरण हमारे सामने आ गया कि हम बहुत व्यस्त हैं।
पुराने जमाने की घटना है कि एक चोर पकड़ा गया। कारागार में डाल दिया । संतरी पहरा दे रहा था। ऐसा हुआ कि रात को चोर भाग गया। राजा को पता चला। सन्तरी को बुलाया और पूछा---'चोर चला गया ? कैसे गया ? कैसे भागा ?' सन्तरी बोला, 'महाराज ! क्षमा करें, मैं चिन्तन में व्यस्त था और पता ही नहीं चला कि चोर कब भाग गया।'
व्यस्तता तो एक ऐसा बहाना है कि किसी भी परिस्थिति में यह कहा जा सकता है कि मैं काम में व्यस्त था, मुझे पता ही नहीं चला । कहीं-कहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org