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________________ एकला चलो रे हमारे जीवन में कुछ द्वन्द्व हैं । पूरा जीवन द्वन्द्वात्मक पद्धति से चल रहा है। एक को खोजना हमारे लिए असम्भव जैसा बन गया। केवल प्रकाश और अंधकार, सर्दी और गर्मी का द्वन्द्व ही नहीं है। हमारे मन में भी बहुत सारे द्वन्द्व हैं । सुख और दुःख का भी द्वन्द्व है । दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा जन्मा नहीं और जन्मने वाला भी नहीं है जिसने केवल सुख का ही अनुभव. किया हो या केवल दुःख का ही अनुभव किया हो। यह भी एक द्वन्द्व है । समझदार आदमी द्वन्द्वातीत होना चाहता है। पर द्वन्द्वों की दुनिया इतनी बड़ी है कि उसको पार करना हमारे वश की बात नहीं। यह महासागर इतना विशाल है कि इसे तैर कर पार करना सम्भव नहीं है । अकेला होना, द्वन्द्व से मुक्ति पाना परम लक्ष्य है । पूरी अध्यात्म की साधना, ध्यान-रोग की सारी प्रक्रिया अकेला होने की प्रक्रिया है । भगवान् महावीर ने साधक के लिए कुछ सूत्र दिये । उनमें से एक सूत्र है-'निकेयमिच्छेज्ज विवेकजोग्गं"। स्थान-विविक्त हो साधक एकान्तवास करे । एकांतवास को जीवन की परम उपलब्धि मानता हूं । जिस व्यक्ति ने एकांत में बसना, एकांत में रहना नहीं सीखा, जिसे एकांतवास का सुयोग नहीं मिला वह सही अर्थ में सौभाग्यशाली आदमी नहीं है। वह महान सौभाग्यशाली है जिसे एकांतवास का सुयोग मिला हुआ है। बहुत कठिन है एकांत में रहना । भय घिरा हुआ है । दो होते हैं, भय नहीं होता है । अकेला हुआ, डर शुरू हो जाता है । एक व्यंग्य पढ़ा था मैंने । एक मित्र ने कहा—आजकल जुड़वां बच्चे बहुत जन्म ले रहे हैं । दूसरे ने कहा-तुम्हें क्यों आश्चर्य होने लगा ? आज इतनी हिंसा, इतनी मारकाट, इतने अपराध बढ़ गए हैं, यदि कोई आता हैं तो अकेला अपने आप को सुरक्षित अनुभव नहीं करता। इसलिए कोई आता है तो दूसरे को साथ में लेकर आता है। लगता है कि पूरा वातावरण भय से भरा हुआ है । अकेले आदमी को साहस नहीं होता कि यात्रा अकेला करे। अकेला होना, एकांतवास करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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