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आहार, नींद और जागरण
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जिनकल्पी मुनि बहुत थोड़ी नींद लेते हैं । यथालन्दक अर्थात् निरन्तर अप्रमाद की साधना करने वाला नींद से परे हो जाता है । भगवान् महावीर ने अपने पूरे साधनाकाल में, बारह वर्ष से ज्यादा साधनाकाल में, केवल कुछ मिनटों की नींद ली । एक घंटा भी नींद नहीं ली । इस स्थिति को भी प्राप्त किया जा सकता है।
आहार और नींद-इन दोनों पर ठीक विचार करें तो ये दोनों मानसिक विकास या मनोबल बढ़ाने में बहत सहयोगी बनते हैं । हमारे शरीर की शक्ति, स्फूर्ति प्राणवत्ता है । वह बढ़े और जो इस साधना के द्वारा बढ़ती है, वह विकास के लिए होती है और दूसरे की भलाई के लिए बढ़ती है। शक्ति दूसरे स्रोतों से भी प्राप्त की जा सकती है। आप एकान्ततः इस बात को स्वीकार न करें । शक्ति बढ़ाने के दूसरे स्रोत भी हैं। ऐसे पदार्थ भी हैं, ऐसी औषधियां भी हैं कि जिनके द्वारा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है, किन्तु एक अन्तर आएगा कि पदार्थों से और दूसरे प्रकारों से बढ़ाई हुई शक्ति, पछाड़ने वाली शक्ति होगी । अपने भीतरी स्रोतों से बढ़ाई जाने वाली शक्ति, उठाने वाली शक्ति होगी।
एक बच्चे से कहा गया कि तुम मल्ल-पहलवान बनो। छोटा बच्चा नहीं था, थोड़ा समझदार हो गया था। उसने पूछा-'क्यों ? किसलिए? क्योंकि मल बड़ा ताकतवर होता है । यह तो ठीक बात है, ताकतवर तो मुझे बनना है और बताने वाला बोलता गया कि इतनी ताकत उसमें होती है कि सामने जबर्दस्त से जबर्दस्त व्यक्ति को पछाड़ देता है । वह बोला-नहीं बनूंगा, मुझे नहीं चाहिए । मैं ताकतवर तो बनूंगा, मुझे शक्ति चाहिए किंतु वह शक्ति नहीं चाहिए जो दूसरों को पछाड़ सके । वह शक्ति चाहिए जो दूसरे को उठा सके । शक्ति होती है पर शक्ति के दो रूप हो जाते हैं । साधना के द्वारा, अपने भीतरी स्रोतों के द्वारा, आहार और नींद के संयम के द्वारा जो मन की शक्ति बढ़ती है वह दूसरे को उठाने वाली शक्ति होती है, दूसरे का कल्याण और भलाई करने वाली शक्ति होती है। दूसरे-दूसरे स्रोतों से प्राप्त होने वाली शक्ति दूसरे को पछाड़ने वाली शक्ति होती है।
हम स्वयं अपना निर्णय करें विवेक से और ऐसी शक्ति का अर्जन करें जो स्वयं को तो उठाए ही, दूसरे को भी उठा सके।
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