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एकला चलो रे : आपत्ति है ? किन्तु साधना की दृष्टि से सोचने वाले व्यक्ति को इस बात पर जरूर ध्यान देना होगा कि समय का अपना मूल्य होता है और आज उसकी वैज्ञानिक महत्ता भी हो सकती है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से हम इसकी व्याख्या करें कि हमारा जो पीनियल ग्लेण्ड है उससे दो प्रकार के स्राव होते हैं— सेराटोनिन और मेलाटोनिन । ये दो हारमोन्स बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । जो मेलाटोनिन है वह काम पर नियन्त्रण करने वाला है । काम-वासना को जगाने वाले हारमोन्स बाहर से आते हैं, पीनियल से आते हैं और उन पर नियन्त्रण करने करने वाला है — मेलाटोनिन । वह तीन या चार बजे तक वृत्ति पर नियन्त्रण रखने का काम करता है । चार बजे के बाद प्राण के प्रवाह को भरने लगता है । हम बाहर से, आकाशमण्डल से बहुत प्राण 'लेते हैं । जब तक मेलाटोनिन अपना काम नहीं करता, प्राण के प्रवाह को हम अपने भीतर ले नहीं सकते । चार बजे का समय है कि उस समय प्राण का प्रवाह मेलाटोनिन के द्वारा पूरे शरीर में भरता है, नयी स्फूर्ति और नयी चेतना जागती है। बहुत सारे आकाशमण्डल से आने वाले विकिरणों के अनुदान का समय होता है तीन और चार बजे का । इसलिए बतलाया गया कि ध्यान के लिए सबसे अच्छा समय है दो बजे के बाद चार बजे तक का । यों पांच बजे तक यानी पूर्वरात और अपररात । जो पूर्वरात में और अपररात में आत्मा के द्वारा अपने आपको देखता है, यह समय साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण समय होता है । रात्रि के बारह बजे के बाद चार बजे तक का या पांच बजे तक का, इस समय जो व्यक्ति उठता है वह प्राण से भरा हुआ अनुभव करता है, स्फूर्ति से अपने आपको भरा हुआ अनुभव करता है । बाद में सोने वाला सोता है तो नींद भी लेता है और उठता है तो आलस्य में भरा हुआ । उठ जाने के बाद आदमी ऐसा अनुभव करता है कि पूरी ताजगी आयी नहीं । नींद और जागरण पर और लम्बी चर्चा न भी करें, यह निश्चित है कि मानसिक बल को बढ़ाने के लिए कम नींद लेना बहुत जरूरी है। बहुत सोना बहुत खराब है । सोने में एक हानि तो प्रत्यक्ष है । आपने सुना कि सोते समय हमारी श्वास की संख्या बढ़ जाती है । १५ से १८ श्वास हो जाती है। श्वास की संख्या बढ़ना स्वास्थ्य और दीर्घायु दोनों ही दृष्टि से हानिकारक है । जागना बहुत अच्छा होता है । साधना करते-करते व्यक्ति जागने का इतना अभ्यास कर लेता है कि नींद की स्थिति भी समाप्त हो जाती है । जैसे कुछ व्यक्तियों को भोजन की जरूरत नहीं होती तो फिर कुछ व्यक्तियों को कभी नींद लेने की जरूरत नहीं होती। अप्रमत्त मुनि नींद नहीं लेता ।
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