________________
आहार, नींद और जागरण
१८३२
- एक किसान था। किसी ने कहा कि भोजन करो तो बीच में पानी पी लिया करो। बहुत अच्छा है । अनपढ़ आदमी बात को बहुत जल्दी पकड़ता है। और पकड़ता है तो पूरी तरह से पकड़ता है। फिर छोड़ता नहीं है जल्दी से । बीच में पानी पीने लगा । चार रोटियां खाता था। दो खाता और बीच में पानी पी लेता । मोटी-मोटी रोटियां । एक दिन भूल गया । पत्ली से बोला-आज तो पानी पीना भूल ही गया, याद ही नहीं दिलाया। तो कोई बात नहीं, पानी ले आओ । पानी पीया और फिर चार रोटियां और खा लौं । उसने आठ रोटियां खा लीं और हजम कर गया। इसलिए एक नियम नहीं बनता आदमी के लिए। क्योंकि अलग-अलग पाचन को शक्ति होती है। ठीक इसी प्रकार नींद के लिए नियम नहीं बनता कि कितनी नींद लेनी चाहिए । एक व्यक्ति दो-चार घंटे नींद लेकर पूरी शक्ति का और ताजगी का अनुभव करता है । एक व्यक्ति सात-आठ घंटे सो जाता है तो भी ऊंघता ही रहता है । आचार्यश्री बारह बजे सोते हैं और मैं भी बारह बजे सोता हूं। चार बजे उठ जाते हैं । मैं भी उठ जाता हूं। आचार्यश्री कहते हैं कि नींद जमा नहीं रहती। मुझे लगता है कि नींद जमा रहती है । अलग-अलग स्थिति होती है । बहुत कम सोते हैं आचार्यवर । फिर भी वे कभी महसूस नहीं करते कि भार है, सिर पर कर्जा चढ़ गया तो उसे उतारना है । मुझे अनुभव होता है कि भार है और इस नींद की कमी को पूरा किया जाए। तो अलग-अलग स्थिति होती है।
नींद के बारे में कोई सामान्य नियम नहीं बनाया जा सकता कि इतना समय नींद में लगना चाहिए। किन्तु एक बात बहुत महत्त्वपूर्ण है साधना की दृष्टि से । उस पर साधना करने वाले व्यक्ति को तो ध्यान देना जरूरी है। इसलिए जरूरी है कि सारी संस्कृति और सभ्यता बदलती जा रही है। आज आठ बजे उठने की संस्कृति पनप रही है । सूर्योदय की बात छोड़ दें। आज आठ-नौ बजे उठने की बात सामान्य होती जा रही है। कभी कहा गया था कि चार बजे उठना, ब्राह्म मुहूर्त में उठना-कुछ समय के बाद तो वह बात भी एक कल्पना की बात हो जाएगी। जैसे राजा लोग कल्पना की बात बन गए वैसे ही यह चार बजे उठने की बात भी शायद कल्पना की बात बन जाएगीं। हमारा यह कोई आग्रह नहीं कि आठ बजे न उठा जाए। ठीक है, जिनको बहुत व्यवसाय करना है, धन्धा करना है, व्यस्त रहना है, व्यस्तता में जीवन को बिताना है, वे चाहे आठ बजे उठे, चाहे नौ बजे उठे, किसको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org