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________________ आहार, नींद और जागरण १८१ कर दिया कि इस विषय में कोई सन्देह नहीं रहा है । आज बहुत संवेदनशील कैमरे बन गए हैं । हम यहां इतने लोग बैठे हैं। यहां से चले जाएं, दो घंटे बाद भी इस पूरी परिषद् का फोटो लिया जा सकता है। आदमी तो चला गया पर आदमी के परमाणु तो वहीं मौजूद हैं, वहीं विद्यमान हैं। वे तदा-कार रहते हैं, उसी आकार में रहते हैं। मैंने पहले ही कहा था कि हमारा . यह आकाशमण्डल इतना विशाल है, उसमें इतना कुछ भरा पड़ा है कि पूरा तो नहीं, एक अणु का भी पता लग जाए तो भी आश्चर्य से भर जाए । ध्यान करने वाले व्यक्ति को बहुत जागरूक बनना पड़ता है । हम प्रतिक्षण श्वास के प्रति जागरूक रहें । हम निरन्तर शरीर में होने वाले प्रकंपनों के प्रति जागरूक रहें । निरन्तर अपने चैतन्य- केन्द्रों में होने वाले पर्यायों, परिणमनों और परिवर्तनों के प्रति जागरूक रहें। यह जागरूकता क्यों ? ध्यान का यह मतलब नहीं कि एक जगह ध्यान केन्द्रित कर दिया और उसी -जगह चलते चलें । यह कोई बड़ी बात नहीं है । ध्यान में संज्ञा - शून्यता नहीं होनी चाहिए। ध्यान में मूर्च्छा भी नहीं होनी चाहिए । ध्यान में मान की विस्मृति भी नही होनी चाहिए। ध्यान का मतलब है - जागरूकता, जागरूकता का विकास | छोटी-से-छोटी घटना अपने शरीर के भीतर होने वाली और अपने आसपास में होने वाली विकसित होते-होते पूरे आकाशमण्डल में होने वाली घटना को पकड़ा जा सके। इतनी हमारी संवेदनशीलता जाग "जाए । 1 1 आहार की चर्चा में एक बात और चर्चित करना चाहता हूं । आहार भोजन और जीभ का बहुत गहरा सम्बन्ध हैं । जिस व्यक्ति ने जीभ को अनुशासित नहीं किया, वह व्यक्ति वासना को अनुशासित नहीं कर सकता । मेरे मन में भी प्रश्न था बहुत वर्ष पहले कि कहां का सम्बन्ध जोड़ा । आहार का, भोजन का काम का और वासना का क्या सम्बन्ध है ? किन्तु जैसे-जैसे इस विषय की गहराई में पहुंचा, मुझे लगा कि सत्य कभी खोज लिया जाता है, सत्य हमारे सामने रह भी जाता है । पर व्याख्या खो जाती है । ताला रह जाता है, चाबियां खो जाती हैं । चाबियां नहीं होती हैं तो ताले भी निकम्मे हो जाते हैं । यही हुआ । हमारे शरीर का एक केन्द्र है, जिसे हठयोग की भाषा में स्वाधिष्ठान चक्र कहा जाता है । प्रेक्षाध्यान पद्धति में हम उसे स्वास्थ्य केन्द्र कहते हैं । इसके साथ दोनों बातें जुड़ी हुई हैं-- काम वासना और भोजन की वासना । दोनों का सम्बन्ध उस स्वास्थ्य केन्द्र से या स्वाधिष्ठान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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