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________________ आहार, नींद और जागरण १७६ भी चाहिए, क्षार भी चाहिए। विटामिन सार तत्त्व भी चाहिए । अगर एक नहीं मिलता है तो उससे सम्बन्धित अंग निकम्मा हो जाता है । शरीर का श्रम करने वाला व्यक्ति यदि अन्न ज्यादा खाता है तो कठिनाई पैदा नहीं होती । किन्तु केवल अन्न से मानसिक विकास की स्थिति पूरी नहीं बनती। मानसिक काम करने वाला, बौद्धिक श्रम करने वाला कोरे अन्न पर रहे और उसे स्वस्थ पोषण न मिले तो मानसिक अवस्था गड़बड़ा जाएगी। इसलिए संतुलन यानी न अपोषण और न कुपोषण किन्तु सम्यक् पोषण । यह आज मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानसशास्त्रियों के द्वारा संभव हो गया है। इस स्थिति में आहार पर अनेक कोणों से विचार करना जरूरी होता है । जैसा आहार होगा, वैसा आपका व्यवहार होगा। यह बहुत पहले ही खोज लिया गया था। यह कोई नयी बात नहीं। हजारों वर्ष पहले यह बात खोज ली गई थी कि जैसा खाए अन्न वैसा होए मन ।। संस्कृत में एक रूपक है, बहुत सुन्दर रूपक । प्रश्न हुआ कि दीया जलता है, प्रकाश होता है तो साथ-साथ में यह धुआं क्यों निकलता है ? प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि धुआं क्यों निकलता है। वैज्ञानिक व्याख्या इसकी दूसरी हो सकती है । काव्य की भाषा में इसकी जो व्याख्या की गई, उसका भी अपना मूल्य है । कवि ने कहा—जैसा खाता है वैसा ही परिपाक होता है। जैसा निगलता है, वैसा ही उगलता है । दीया जलता है, प्रकाश होता है। अन्धकार को खाता है तो फिर उसका परिपाक होगा। वह जो निगलेगा, उसे छोड़ेगा । अन्धकार को खाने वाला दीया धुआं नहीं छोड़ेगा तो और क्या छोड़ेगा ? इस रूपक से भी, इस काव्य की शब्दावली से भी हम इस सचाई को प्राप्त हो सकते हैं कि भोजन के साथ हमारे मन का कितना सम्बन्ध है ? न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अपितु मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी भोजन पर विचार करना बहुत जरूरी है। ___ एक है शारीरिक स्वास्थ्य, दूसरा है मानसिक स्वास्थ्य और तीसरा हैआध्यात्मिक स्वास्थ्य या भावनात्मक स्वास्थ्य । भोजन का सम्बन्ध हमारी बृत्तियों से अधिक है । कषाय, क्रोध, अहंकार, लालच से भी भोजन का बहुत बड़ा सम्बन्ध है । एक प्रकार का भोजन करने वाला व्यक्ति बहुत क्रोधी बन जाता है । एक प्रकार का भोजन करने वाला व्यक्ति लालची बन जाता है । बहुत गहरा सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । इन सारी दृष्टियों से हम आहार पर और भोजन पर विचार करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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