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________________ आहार, नींद और जागरण १७७ खाता, अपितु पशु में विद्यमान पाशविक संस्कार -- पशुता को भी साथ-साथ खाता है । हम इस बात को अस्वीकार नहीं करेंगे कि भोजन के परमाणुओं में अनेक तत्त्व विद्यमान होते हैं, अनेक संस्कार मिले हुए होते हैं । आदमी बीमार हो गया । रक्त चढ़ाने की जरूरत हुई । डॉक्टर रक्त चढ़ाता है तो पहले ग्रुप मिलाता है । किस ग्रुप का रक्त है ? ठीक मिला या नहीं ? सेठ को रक्त चढ़ाना था - एक कंजूस आदमी का रक्त ठीक मिला, चढ़ाया गया । सेठ को पता चला कि उसको कंजूस का रक्त चढ़ाया जा रहा है | सेठ बड़ा उदार था । अपने मुनीम को कहा—उसको तीन हजार रुपया दे दो । दूसरी बार फिर खून चढ़ाने की जरूरत हुई । उसी कंजूस का रक्त सेठ ने कहा—उसे सौ रुपये दे दो । तीसरी बार जरूरत हुई तो सेठ ने एक कागज लिया और उस पर लिखा- साधुवाद ! धन्यवाद ! ऐसा क्यों हुआ ? सेठ तो उदार था किन्तु जिसका रक्त चढ़ाया जा रहा था, वह कंजूस था । उसका इतना प्रभाव हुआ कि जब तक रक्त का पूरा प्रभाव नहीं हुआ तो तीन हजार रुपये दिये, थोड़ा प्रभाव हुआ तो सौ रुपये और पूरा प्रभाव हुआ धन्यवाद दिया । चाहे रक्त हो, चाहे कोई दूसरी वस्तु हो, हमारे शरीर में बाहर के जो परमाणु प्रवेश पाते हैं, वे परमाणु जिस प्रकार के होते हैं, अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहते । इसलिए यह विषय हमारे लिए इतना महत्त्व का है कि बाहर से क्या आ रहा है, हम पूरा विवेक करें, पूरी छानबीन करें, फिर किसी बात को स्वीकार करें। आजकल प्रत्यारोपण बहुत होता है । एक व्यक्ति में दूसरे व्यक्ति के अंग का प्रत्यारोपण किया जाता है। एक व्यंग्य मानें किन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है । एक आदमी के मस्तिष्क का प्रत्यारोपण किया गया । वह स्वस्थ हो गया । बहुत बोलने लगा । बहुत भाषण देने लगा, लम्बी-चौड़ी बातें बघारने लगा । पत्नी बड़ी परेशान हो गई। डॉक्टर के पास गई, बोलीआपने क्या कर दिया ? मेरा पति तो बहुत शांत था । मौन रहने वाला था । किन्तु जब से आपने ऑपरेशन किया, प्रत्यारोपण किया, तब से सारे दिन बकवास करता है- -सब परेशान हो गए हैं। डॉक्टर ने अपना कान पकड़ा, बोला- तुम ठीक कहती हो । यह किसी राजनेता का मस्तिष्क था और वह लगा दिया, इसलिए सारी गड़बड़ हो रही है । आहार के विषय को हम इस पूरे संदर्भ के साथ समझें कि हम कितने प्रभावित होते हैं आने वाले पदार्थों से, हमारे शरीर में प्रवेश पाने वाले पदार्थों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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