________________
१७६
एकला चलो रे
दूध आदमी पीता है । पर दूध बनने की एक प्रक्रिया है । दूध का पर्याय अव्यक्त होता है—घास के परमाणुओं में । या पशु का जो चारा होता है उसमें दध अव्यक्त होता है । वह घास या चारा गाय-भैंस खाती हैं। खाने के बाद एक प्रक्रिया होती है । प्रक्रिया होते-होते दूध का पर्याय प्रकट हो जाता है। जो दूध गाय के स्तन से निकलता है, वह आकाश में भी भरा हुआ है : जो चीनी ईख में से निकलती है वह चीनी आकाशमण्डल में भी भरी हुई है। आकाश एक इतना बड़ा खजाना है, इतना बड़ा रेकार्ड है कि ऐसी कोई चीज नहीं जो आकाशमण्डल में उपलब्ध न हो । यदि आकाशमण्डल में अनुपलब्ध हो तो वह फिर किसी प्रकार से हमें उपलब्ध नहीं हो सकती। जो कुछ. पदार्थ आता है वह आकाशमण्डल से ही आता है।
जिन व्यक्तियों में सूक्ष्म को पकड़ने की शक्ति प्रकट हो जाती है उन्हें फिर पूरी प्रक्रिया के बाद स्थूल वस्तु को लेने की जरूरत नहीं होती, वस्तु को आकाश में से ही ले लेते हैं और उस पर्याय में उसे बदल देते हैं। यह मनोभक्षण की प्रक्रिया है।
__आहार जरूर लेना होता है। जो लोग मनोभक्षि आहार लेते हैं उन्हें बहत शुद्ध आहार मिलता है। उसमें विकृतियां नहीं आतीं। न अर्जन की विकृति, न उत्पादन की और न खाने की विकृति । किन्तु जो लोग कवलआहार लेते हैं, भोजन लेते हैं, कौर से खाते हैं, उन्हें इन तीन विकृतियों पर ध्यान देना जरूरी होता है कि अर्जन में विकार न हो । बहुत लम्बी चर्चा में अभी हम न जायें, केवल एक बात पर ध्यान केन्द्रित करें कि अर्जन में क्रूरता न हो। अगर एक बात भी आ जाती है तो हमारी करुणा जाग जाती है, मृदुता का भाव जाग जाता है । दूसरों को सताने वाली निर्दयता और क्रूरता यदि समाप्त होती है तो आहार की शुद्धि का पहला चरण सफल हो जाता है।
जो व्यक्ति दूसरों के प्रति क्रूर व्यवहार करता है, फिर चाहे वह अन्न खाता है, शाकाहारी होता है किन्तु वह शाकाहार भी बहुत दुष्प्रभाव डालने वाला बन जाता है । मांसाहार के निषेध के और अनेक तर्क हो सकते हैं। उनमें एक प्रबल तर्क यह भी है कि क्रूरता का भाव किए बिना कोई मांसाहारी नहीं बन सकता । व्यक्ति में छिपा यह क्रूरता का भाव होता है तो वह मांसाहार करता है । दूसरी बात है कि मांसाहार करने वाला केवल मांस को ही नहीं खाता, केवल पशु के मांस में मिलने वाले विटामिन 'ए' को ही नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org