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________________ आहार, नींद और जागरण हमारी जीवन-यात्रा में चार वृत्तियां प्रमुख भाग लेती हैं-आहार, नींद, 'भय और मैथुन । और भी संज्ञाएं हैं, वृत्तियां हैं, जो चित्त को प्रभावित करती हैं पर ये चार सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली हैं। __ आहार का सम्बन्ध जीवन से जुड़ा हुआ है। कोई भी प्राणी आहार के बिना जीवन की यात्रा को नहीं चला सकता। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी भोजन की जरूरत समाप्त हो जाती है। आज भी कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जिन्हें खाना जरूरी नहीं। यह एक आश्चर्य माना जाता है किन्तु जब एक रासायनिक परिवर्तन होता है तो आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं रहती। हम जो खाते हैं वे सारे द्रव्य आकाशमण्डल में फैले हुए हैं। इसीलिए एक आहार की संज्ञा रखी गई—मनोभक्षि आहार। जब किसी निमित्त से एक शक्ति जाग आती है, व्यक्ति मन से आहार को खींच लेता है। देवता कभी कवलआहार नहीं करते। वे मनोभक्षि आहार लेते हैं। कुछ साधक भी ऐसे हो जाते हैं जो मनोभक्षि आहार लेने लग जाते हैं, उन्हें कवल-आहार की जरूरत नहीं रहती। दिगम्बर परम्परा और श्वेताम्बर परम्परा में एक बिचार-भेद है । श्वेताम्बर मानते हैं कि केबली कबल-आहार करते हैं। दिगम्बर मानते हैं कि वे कवल-आहार नहीं करते । मुझे ऐसा लगता है कि अनेकांत की दृष्टि का उपयोग करें तो यह कोई विवाद का विषय नहीं है। सामान्य आदमी कवलआहार करते हैं। जिनकी साधना परिपक्व हो जाती है, जरूरी नहीं कि वे कवल-आहार करें ही । न करें, यह भी जरूरी नहीं। साधक के लिए दोनों स्थितियां बन सकती हैं, कवल-आहार की स्थिति भी हो सकती है और कवल-आहार न करें तो भी जीवन की स्थिति चल सकती है। ममोभक्षि आहार की स्थिति जागने पर फिर बाहर से आहार लेने की आवश्यकता नहीं होती । इतना तो निश्चित ही स्वीकार करना होगा कि वे मंह से न खाएं पर पूरे शरीर से तो खाना ही होता है। रोम आहार को नहीं छोड़ जा सकता और मनोभक्षि आहार की स्थिति भी निमित्त हो सकती है। उनके द्वारा स्थूल द्रव्यों को भी आकाश से खींचा जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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