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जागरूकता
स्थाएं होती हैं । किन्तु सफलता के लिए यह जरूरी है कि यह भेद समाप्त हो जाए। जो इस भेद को समाप्त नहीं कर पाता वह अपने कार्य में, जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता । जब तक चित्रकार और चित्त-क्रिया दोनों पृथक् होते हैं तब तक कोई भी व्यक्ति सफल चित्रकार नहीं हो सकता। अच्छा वैज्ञानिक, अच्छा इंजीनियर या अच्छा शिल्पी तभी होता है जब कर्ता और क्रिया का भेद समाप्त हो जाता है। कर्ता क्रियामय बन जाता है तब वह सफल होता है । चलने वाला स्वयं गति बन जाता है, काम करने वाला स्वयं क्रिया बन जाता है, उस स्थिति में चेतना जागती है और विशेष बातें निष्पन्न होती हैं। तन्मय होने पर सफलता अपने आप वरण करती है, सफलता के लिए प्रयत्न करने की जरूरत ही नहीं होती।
व्यक्तित्व-निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है---छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना । आज का आदमी बड़ी-बड़ी बातों पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित किए रहता है, छोटी बातों पर ध्यान नहीं देता। इतिहास इसका साक्षी है कि आज तक जितने भी बड़े आदमी हुए हैं, उन्होंने जीवन की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान केन्द्रित किया था । बड़ी बात करने वाला काम नहीं कर सकता।
बीमार ने वैद्य से कहा-जुकाम हो गया है, दवा दें। वैद्य बोला-मेरे पास इस छोटी बीमारी का इलाज नहीं है। मैं बड़ी बीमारियों का इलाज करता हूं। निमोनिया की मेरे पास अचूक दवा है। सर्दी का मौसम है । जुकाम है। जाओ, तालाब में स्नान करो। तुम्हें निमोनिया हो जाएगा। फिर मैं तुम्हारा सफल इलाज कर दूंगा।
आदमी की मनोवृत्ति बड़ी अजीब होती है। वह छोटी बात का इलाज करना नहीं चाहता। जब बात बड़ी बन जाती है तब इलाज करता है । उस स्थिति में इलाज हो ही, यह निश्चित नहीं है । रोग बढ़ता जाता है, समस्या बढ़ती जाती है। __ हम छोटी बातों पर ध्यान दें। एक अंगुली हिलती है। यह बहुत छोटीसी बात है । आदमी बैठा है। अनावश्यक ही अंगुली को हिलाता रहता है । शरीर को हिलाता रहता है। बात तो छोटी है पर वैज्ञानिक दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि शरीर को अकारण हिलाते रहने से शक्ति का अपव्यय होता है। हिलती है अंगुली और शक्ति खर्च होती है मस्तिष्क की, क्योंकि एक अंगुली के हिलाने से पूरे दिमाग को कार्यरत रहना होता है । क्रियावाही तन्तु तब हिलता है जब मस्तिष्क के पास तदनुरूप इच्छा का संदेश
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