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शिथिलीकरण और जागरूकता
बहुत सारी समस्याएं, मानसिक उलझनें समाप्त होती हैं । सबसे बड़ी समस्या मैं मानसिक समस्याओं को मानता हूं । शारीरिक समस्या उतनी विकट नहीं है । विकट है मन की समस्या और इसका समाधान पाने का सबसे अच्छा साधन है स्वर-मन्त्र का कायोत्सर्ग । स्वर-यन्त्र की शिथिल करें, कण्ठे-भाग पर ध्यान केन्द्रित करें और कण्ठ को शिथिल करें । कण्ठ को शिथिल करने का अर्थ है आपने ठीक नाड़ी पर हाथ दे दिया है। बहुत बार बड़ी भ्रान्ति होती है ।
पुराने जमाने की बात है । वैद्य लोग निदान करते नाड़ी को देखकर रोगी था । किसी वैद्य के पास गया । बोला- 'बीमार हूं, निदान करो और दवा दो ।' वैद्य किसी दूसरे ध्यान में था । हाथ पकड़ा, देखा और थोड़ी देर बाद बोला कि तुम्हारी नाड़ी तो बहुत चंचल चल रही है। रोगी बोला'वैद्यजी ! क्या बताऊं, आपका हाथ तो मेरी घड़ी पर था, नाड़ी पर था ही नहीं ।'
जब हाथ सही नाड़ी पर नहीं टिकता, निदान नहीं हो सकता । हम अभी निदान नहीं कर पा रहे हैं, प्रयोग कर रहे हैं । पर प्रश्न यही रहता है कि ध्यान करते हैं, बैठते हैं, समय लगाते हैं, पर विकल्प तो शान्त नहीं होते । वे सताते रहते हैं । सही निदान करें । निदान तब होगा जब चिन्तन, स्मृति, कल्पना, विकल्प – ये नहीं होंगे । ये सारे शब्दों के द्वारा होते हैं । शब्द पैदा होता है स्वर - यन्त्र के द्वारा और शब्द निकलता है जीभ के द्वारा | स्वर-यंत्र चंचल होगा, जीभ चंचल होगी तो विकल्प आएंगे । स्वप्नशास्त्रियों ने प्रयत्न किया कि एक व्यक्ति रात को सो रहा है और स्वप्न आ रहा है । स्वप्न के समय में भी स्वर यन्त्र और जीभ सक्रिय रहती है आप निर्विकल्प अवस्था पा लें । स्वर-यंत्र सक्रिय नहीं होगा या जीभ सक्रिय नहीं होगी । या स्वर-यंत्र को निष्क्रिय बनाएंगे, जीभ को निष्क्रिय बनाएंगे, फिर कोई विकल्प नहीं होगा | यह सही निदान हमारे हाथ में लग जाए तो मानसिक समस्या जटिल नहीं होगी ।
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हम मनोबल को बढ़ाने की चर्चा कर रहे हैं मनोबल क्षीण होता है तनाव के द्वारा, उलझनों के द्वारा और ग्रन्थि तंत्र के असंतुलन के द्वारा मनोबल को विकसित करने का हमारे पास एक बड़ा जागरूकता का समन्वय । दोनों का समन्वय कायोत्सर्ग भी बढ़े, जागरूकता भी बढ़े।
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नुस्खा है— शिथिलीकरण और हो— शिथिलीकरण भी बढ़े, दोनों साथ में समन्वित होते हैं तो
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