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एकला चलो रे
चलते हैं, चलते हुए भी हाथ को शिथिल कर सकें । पैर को भी शिथिल कर सकें । हमारे शरीर में क्षमता है, बड़ी क्षमता है । अगर हमारा अभ्यास पटु हो जाए तो सिर के एक बाल को आदमी हिला सकता है । अंगुली हिलाने में कोई बात बड़ी नहीं मानी जाती। हम जब चाहें तब अंगुली को हिला सकते हैं । जब चाहें पैरा हिला सकते हैं, हाथ को हिला सकते हैं। कान को नहीं हिला सकते | यह माना गया है कि योगी का पहला लक्षण है, जिसके कान हिलते हों । हिल सकते हैं, कोई कठिनाई नहीं । जैसे अंगुली हिलती है, वैसे ही कान हिल जाता है । बराबर हिलता है। यह कोई पढ़ी-सुनी बात नहीं कह रहा | हिलता है - यह अनुभव की बात है । हिलता है कान, एक बाल भी हिल सकता है । हमारे शरीर में बहुत विचित्रताएं हैं, बहुत रहस्य भरे पड़े है । जीभ एक बहुत रहस्यपूर्ण अवयव है हमारा । यदि जीभ का कायोत्सर्ग करना, उसको अधर में टिकाना जान लें तो मन को टिकाने की समस्या हल हो जाती है । जिस व्यक्ति ने जीभ को स्थिर करना सीख लिया, उसने मन को शान्त और निर्विकल्प करना सीख लिया । विकल्प पैदा होता है शब्द के द्वारा । बिना शब्द के कोई विकल्प पैदा नहीं होता । सारे विकल्प शब्द से पैदा होते हैं और शब्द पैदा होता है स्वर-यंत्र के द्वारा । एक स्वर-यंत्र और दूसरा जीभ-- दो ऐसे रहस्य हैं । जो व्यक्ति निविचार, निर्विकल्प और निश्चिन्तन होना चाहता है, चिन्ताओं से मुक्त होना चाहता है, उसे इन दो रहस्यों पर ध्यान देना ही होगा । जो इन दो रहस्यों को नहीं समझता, इनके प्रति लापरवाह रहता है वह उस स्थिति को नहीं पा सकता ।
विद्यार्थी को एक शौक थी, उसने सफेद खरगोश पाला । बड़ा प्यार करता । प्यार तो करता किन्तु बड़ा लापरवाह । ध्यान ही नहीं देता । शौक भी और लापरवाही भी । दोनों बातें साथ-साथ चलतीं । मां ने देखा -सारसंभाल नहीं कर रहा है और खरगोश ऐसे ही तकलीफ पा रहा है, किसी को दे दिया जाए । उसने दे दिया दूसरे को । कुछ दिन बाद ध्यान आया कि मेरा सफेद खरगोश कहां है ? मां से पूछा । मां ने बताया- मैंने तो बेच दिया । कैसे बेचा ? मुझे तो बहुत प्रिय था। मां ने कहा- तुम ध्यान ही नहीं देते थे कभी । पता है कितने दिन हो गए ? आज दस दिन हुए । आज दस दिन बाद तुम्हें खरगोश याद आया है ।
हम ध्यान नहीं देते । जागरूकता नहीं और जागरूकता के बिना हमारा ध्यान नहीं जाता । ये दो सफेद खरगोश हैं। यदि जागरूकता हो तो हमारी M
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