________________
१६४
एकला चलो रे
रंग क्या है ? एक प्रकाश ही तो है। प्रकाश के ४६वें प्रकंपन का नाम ही है---रंग । सूर्य की किरणों से आने वाला प्रकंपन है । उसमें एक रंग होता है। रंग और प्रकाश दो नहीं हैं। प्रकाश का ही एक पर्याय है--रंग । जो प्रकाश का प्रभाव होता है, यदि उचित रंग मिलें तो प्रभाव को बदला जा सकता है । इसलिए कर्म को भी हम मूल्य दें। उसके बदलने की बात को भी हम भूलें नहीं। हम इस बात को मानकर चलें कि रसायनों को बदलना, विद्युत् के प्रवाह को बदलना हमारी साधना का मुख्य लक्ष्य है । जैसे-जैसे हम शिथिलीकरण की अवस्था में जाते हैं, जैसे-जैसे हम जागरूकता की अवस्था में जाते हैं हमारे रसायन बदलने शुरू हो जाते हैं। रसायनों को बदलने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपक्रम है--शिथिलीकरण । कायोत्सर्ग के दो अर्थ होते हैशिथिल होना, शरीर को छोड़ देना-शरीर की प्रवृत्तियों को छोड़ देना । दूसरा अर्थ होता है, अपने प्रति जागरूक होना । ये दोनों तनाव को कम करने वाले हैं। शिथिल व्यक्ति तनाव से भरा नहीं होगा। तनाव के कारण हमारे भीतर भी हैं, और बाहर भी हैं । काम, क्रोध, मोह, माया, राग-द्वेष, प्रियताअप्रियता का संवेदन, घृणा, भय, ईर्ष्या, द्वेष-ये सारे आन्तरिक कारण हैं जो तनाव पैदा करते हैं। बाहर में भी तनाव के निमित्त हैं। एक कटु वचन कहा और भीतर में क्रोध था, तनाव से आदमी भर गया। पैदा करने वाले कारण और निमित्त बनने वाले कारण चारों ओर फैले हुए हैं। हर क्षण आदमी तनाव से भर सकता है। शायद बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो एक दिन में पचासों बार तनाव से भर जाते हैं । तनाव निकल नहीं पाता । अकड़न और फिर अकड़न हो जाती है । कुछ मनोवैज्ञानिको ने यह खोज की है कि अहंकार जितना प्रबल होता जाता है, शरीर में ऐंठन बढ़ती जाती है, अकड़न बढ़ती जाती है और होते-होते शायद पथरी की स्थिति भी बन जाती है। शरीर मन से प्रभावित होता है, मन शरीर से प्रभावित होता है । दोनों का सम्बन्ध बराबर चलता है। हमारे पास तनाव के कारण मौजूद हैं। हमारे पास तनाव के निमित्त भी मौजूद हैं। इस स्थिति में हम तनाव से मुक्त कैसे हो सकते हैं ? __ योग के आचार्यों ने इस विषय पर खोज की। उन्होंने सबसे पहला कारण खोजा, मंदश्वास या दीर्घश्वास । दीर्घ श्वास का मतलब होता है-मन्द श्वास, श्वास की गति को कम करना। श्वास जैसे-जैसे मन्द होगा, शिथिलीकरण अपने आप प्राप्त होगा। आप बैठ गए, लेट गए, शरीर शिथिल हो जाए, यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org