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शिथिलीकरण ओर जागरूकता
कर्म सब कुछ कैसे कर पाएमा ?
हमारी दो स्थितियां होती हैं, एक उपादान और एक निमित्त । उपादान अपना काम करता है और निमित्त अपना काम करता है। कर्म का विपाक भी निमित्तों के सहारे होता है । यदि अनुकूल परिस्थिति नहीं मिलती, अनुकूल व्य, क्षेत्र, काल और भाव नहीं मिलता, अनुकूल वातावरण नहीं मिलता तो कर्म का विपाक भी निकम्मा चला चाता है। हम यह न माने कि कर्म का विपाक होगा ही । कर्म का विपाक होना भी परिस्थिति-सापेक्ष है । कर्म बहुत बार विपाक के बिना भी चला जा सकता है। कर्म को ऐसे ही भोगा जा सकता है, चाहे अच्छा कर्म हो, चाहे बुरा कर्म हो। बहुत अच्छा कर्म किया हुआ है और यदि आदमी हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है, यह सोचता है कि अच्छा कर्म किया हुआ है, भाग्य में जो लिखा हुआ है वह हो जाएगा, तो वह भाग्य में लिखा हुआ कभी नहीं होगा। निकम्मा चला जाएगा। अच्छा कर्म भी निकम्मा चला जा सकता है और बुरा कर्म भी निकम्मा चला जा सकता है । कर्म सब कुछ होता तो पुरुषार्थ को इतना मूल्य देने की आवश्यकता नहीं होती।
स्याद्वाद की दृष्टि से सोचने वाले आचार्यों ने एक मार्ग सुझाया था । वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मार्ग था। उन्होंने कहा-काल, स्वभाव, नियति, पुरुषार्थ, कर्म-ये सारे अर्थवान् हैं । किन्तु इनमें ईश्वर कोई भी नहीं । सर्व सत्तावान कोई भी नहीं है । सबकी अपनी-अपनी सीमा है। काल अपना काम करता है, स्वभाव अपना काम करता है, कर्म अपना काम करता है और पुरुषार्थ अपना काम करता है। सबका समन्वय होगा तो घटना ठीक से घटित होगी। यदि किसी एक को पकड़ लिया तो तुम भी उलझोगे और उसको भी बदनाम करोगे । फिर कहोगे-इतना पुरुषार्थ किया और कुछ भी नहीं हुआ, इतना अच्छा कर्म किया और कुछ भी नहीं हुआ । कैसे होगा? तुमने एक को पकड़ लिया । एक को पकड़ने वाला समन को कभी उपलब्ध नहीं हो सकता । समग्रता वहीं फलित होती है जहां सबको साथ में संयोजित किया जाता है । हम इस बात में न उलझें कि दुनिया में हर वस्तु का अपना प्रभाव होता है । जिन लोगों ने रंगों के मूल्य को समझा है, रंगों के कर्तृत्व को समझा है, वे इस बात को अस्वीकार नहीं करेंगे कि ग्रहों से आने वाले विकिरण, रत्नों के विकिरण, कपड़ों के रंगों के विकिरण, भोजन के रंगों के विकिरण--ये सारे के सारे एक साथ जुड़े हैं।
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