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________________ १६२ एकला चलो रे कैसे जीता ? आज का डॉक्टर, आज का मेडिकल साइंस का विद्यार्थी इस बात को बहुत मूल्य भी नहीं देता, किन्तु जो बिंदु का अर्थ था कह खो गया । बहुत बार शन्दों की ऐसी गड़बड़ होती है। कोई कमजोर आदमी था, बीमार था, पूरा पचा नहीं पा रहा था । डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर ने कहा- 'तुम और खाना एक बार छोड़ दो, केवल डबलरोटी खाओ' । उस आदमी ने किसी से पूछा कि 'भई ! डबल का क्या मतलब होता है ?' रोटी तो वह जानता ही था। उसे डबल का अर्थ बताया--दूना । पर पर आया। रोज चार रोटी खाता था। पत्नी से बोला-'आज आठ रोटी खिलाना। डॉक्टर ने डबलरोटी खाने को कहा है।' शब्द के अर्थ में ऐसी सड़बड़ होती है कि मूल बात को पकड़ महीं पाते। शब्दों ने इतना उलझा रखा है, अर्थ हमारे से दूर चला जा रहा है और हम बहुत उलझते जा रहे हैं। : - यह मम्द की चेतना, क्रोध की चेलना, सारी वृत्तियों की चेतना हमारे सामने है। हम शुद्ध चेतना की अभी बात नहीं कर सकते । निर्मल चेतना की, आत्म-साक्षात्कार की अभी बात नहीं कर सकते। इससे पहले ध्यान की एक स्थिति का निर्माण करना होगा, समझौता करना होगा कि चेतना को छोड़ें। पहले चेतना को प्रभावित करने वाले रसायनों को समझे। जब तक हमें उनका ज्ञान नहीं होगा, हमारी समस्या का समाधान नहीं होगा। दो दिन पूर्व एक भाई का प्रपन था, जब हम प्रभावों की दुनिया में जीते हैं और सौरमण्डल के विकिरण हमें प्रभावित करते हैं तो फिर यह ग्रहों की शांति के लिए किए जाने वाले उपक्रम, रत्नों का व्यवहार क्या सहायक नहीं बनता ? बनता है। उसका भी एक उपयोग है। तो फिर मेरे सामने एक भाई का प्रश्न आया है कि यदि रत्नों का उपयोग, ग्रहों की शांति का उपक्रम, यह हमारी स्थिति को बदल सकता है तो कर्मवाद बिलकुल व्यर्थ नहीं हो जाएगा? प्रश्न तो ठीक लगता है, पर गहरे में उतरें तो पता लगता है कि कर्मवाद को ठीक से नहीं समझा जा रहा है । कर्म को इतना अतिरिक्त मूल्य दे दिया “कि हर बात कर्म पर थोपना चाहते हैं। कर्म एक छोटा-सा घटक है। उसे सर्व सत्तावान ईश्वर क्यों बना दिया ? ईश्वर को अस्वीकार करने वाले लोग यदि कर्म को सब कुछ मानने लगें तो मुझे लगता है कि ईश्वर को अस्वीकार करने का कोई अर्थ नहीं होगा । ईश्वर भी सब कुछ नहीं कर सकता तो फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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