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शिथिलीकरण और जागरूकता
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रहे हैं । कंठ सूखने लग गए कि बस, अब समाप्त, अब समाप्त । इतने भयंकर सांड़ कि अब जल्दी समाप्त हो जाने वाला है, कुछ भी बचने वाला नहीं है । दोनों सांड पास आते हैं। इतने में बस यंत्र का उपयोग होता है और वे एक विनीत शिष्य की भांति पास में आकर खड़े हो जाते हैं। हमने बहुत सुना है, पुराने ग्रन्थों में पढ़ा है कि उन्मत्त हाथी, जो अनेक मनुष्यों को कुचलता हुआ जा रहा था, एक व्यक्ति के पास आया और बिलकुल शांत होकर खड़ा हो गया। __यह सारा व्यवहार का परिवर्तन, आचरण का परिवर्तन क्यों होता है ? जब तक हम व्यवहार और आचरण को प्रभावित करने वाले घटकों का ध्यान नहीं करते हैं, जब तक उनका ज्ञान हमें नहीं होता तब तक समस्या का समाधान नहीं होता । यह एक बहुत बड़ा रहस्य ही लगता है, किन्तु यह बात समझ में आ जाती है कि आदमी का व्यवहार और आचरण चेतना के द्वारा घटित होता है। चेतना रसायनों से प्रभावित होती है। उस प्रभावित चेतना से घटित होता है यह परिवर्तन । ... ___ एक प्रश्न आया था आत्मा का । यह बहुत ऊंची बात है। हम सीधा आत्मा को पाएं, भेदविज्ञान करें। आत्मा भिन्न, और शरीर भिन्न, चेतना भिन्न और पुद्गल भिन्न-इस सचाई तक पहुंचें । अभी तो हम जिस चेतना को पकड़ पा रहे हैं, वह चेतना सारी वृत्तियों की चेतना, लेश्या की चेतना है, वह चेतना सारी भावधारा की चेतना है, हम जो चेतना को पकड़ते हैं, लेश्या की चेतना को पकड़ते हैं । लेश्या की चेतना में या तो क्रोध का प्रभाव होता है, या अहंकार का प्रभाव होता है । अज्ञान का प्रभाव होता है, घृणा का प्रभाव होता है, किसी न किसी वृत्ति का प्रभाव होता है। शुद्ध चेतना
और निर्मल चेतना का दर्शन कहां संभव है ? जब तक यह वृत्तियों का सघन घेरा, वृत्तियों का, लेश्याओं का महान् कवच और एक ऐसा वज्रपंजर हमारे आस-पास बना हुआ है, वह जब तक टूट नहीं जाता तब तक यह संभव नहीं है।
सबसे बड़ा घेरा तो अज्ञान का होता है। हमारे सामने शब्द आता है, हम उसे पकड़ नहीं पाते । कितने लोग उलझे हुए हैं । योग में एक चर्चा आती है-'मरणं बिन्दु-पातेन जीवनं बिन्दुधारणात्'-बिन्दु के पतन से मरण होता है और बिंदु के धारण से जीवन होता है। बिन्दु का अर्थ किया जाता हैवीर्य । अगर वीर्य के पात से मरण होता है तो आज कोई जीता ही नहीं ।।
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