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एकला चलो रे
प्रक्रिया मानसिक तनाव को मिटाने की प्रक्रिया है। मानसिक तनाव मिटता है तो हमारे हृदय का परिवर्तन होने में बहुत सुविधा हो जाती है । हम किसी को बदलना चाहते हैं ? चेतना को बदलना केवल चेतना के स्तर पर ही घटित नहीं होता। चेतना को बदलने के लिए चेतना को प्रभावित करने वाले रसायनों और विद्युत्-प्रवाहों को बदलना भी जरूरी है। जब तक हमारे भीतर के रसायन नहीं बदलते हैं, जब तक हमारे विद्युत् के प्रवाह नहीं बदलते हैं तब तक चेतना को कैसे बदला जा सकता है ? आपने सुना होगा--जहां वीतराग होते हैं, तीर्थंकर होते हैं, अर्हत् होते हैं, उनके पास दो विरोधी लोग जाते हैं और उनका वैर समाप्त हो जाता है, वे मित्र बन जाते हैं।
आपने प्रतीक देखे होंगे कि सिंह और बकरी एक घाट पर पानी पी रहे हैं। बिल्ली और चूहे पास-पास में बैठे हैं । क्या यह बात झूठी है ? बिलकुल नहीं । यह संभव है। आज तो वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के द्वारा इन बातों को और अधिक प्रमाणित कर दिया है। बिल्ली और चूहे पर ऐसे प्रयोग किए हैं कि चूहा बिल्ली से नहीं डर रहा है और बिल्ली में आक्रामकता समाप्त हो गयी है । कैसे हुआ यह ? पुराने जमाने में हमें उसकी व्याख्या प्राप्त नहीं हुई । वैज्ञानिक प्रयोगों के द्वारा व्याख्या प्राप्त हो गई। वीतराग के पास जब कोई प्राणी जाता है, वीतरागता की प्रचंड रश्मियां निकलकर उन प्राणियों में प्रवेश कर उनके मस्तिष्क की धारा को, उनके विद्युत् की धारा को, उनके प्राण की धारा को बदल देती हैं। जिस धारा के आधार पर वैर-विरोध चलता था वह सारा समाप्त हो जाता है। प्रयोग किया गया । चूहे और बिल्ली के सिर पर इलेक्ट्रोड लगा दिया गया। दोनों को छोड़ दिया । दोनों सामने आते है, चूहा बिल्ली से प्यार करता है, बिल्ली चूहे से प्यार करती है । बिल्ली के पास चूहा जाता है, उछल-कूद करता है और बिल्ली उसे पुचकारती है। बन्दर के हाथ में केला दिया । इलेक्ट्रोड लगा है, बन्दर के मस्तिष्क में एक भावना प्रवाहित हुई। वह खाने को आतुर हो रहा है । इतने में एक धारा बदली और उसने केले को फेंक दिया।
दो भयंकर सांड मैदान में आते हैं। बीच में एक आदमी खड़ा है, पूरे यन्त्रों से सज्जित होकर । जैसे ही दोनों खूखार सांड़ पहुंचते हैं, सब देख रहे हैं और सबके प्राण कांप रहे हैं। दोनों दौड़ते-दौड़ते उस व्यक्ति के निकट जा
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