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"शिथिलीकरण और जागरूकता
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इसे कोई बहुत बदलने की आशा भी नहीं की जा सकती। इसका बदलना और न बदलना कोई विशेष अर्थ नहीं रखता। हृदय हमारा होना चाहिए मस्तिष्क का अगला हिस्सा जिसे साइंस की भाषा में कहते है 'हाइपोथेलेमस' । मस्तिष्क का अगला हिस्सा है हृदय । यह बदलता है तो -सब कुछ बदल जाता है। यह नहीं बदलता है तो कुछ भी नहीं बदलता।
हदयं चेतनाधिष्ठानं'-यह चरक का एक वाक्य है। चेतना का जो अधिष्ठान है, वह हृदय है। इसके बदलने पर बहुत सारी बातें बदल जाती हैं । हमारे शरीर में यह सबसे ज्यादा नियामक तत्त्व है। मनुष्य का आचार
और व्यवहार प्रभावित होता है ग्रन्थि-तंत्र से । हृदय-परिवर्तन का अर्थ होता है अन्थि-तंत्र का संतुलन । हमारी ग्रन्थियों का संतुलन होता है और मुख्यतः पीनियल, पिच्यूटरी, थायराइड और एड्रीनल-इन चार ग्रन्थियों का संतुलन होता है तो हृदय का परिवर्तन होता है। इनमें असन्तुलन होता है तो हृदय का परिवर्तन नहीं हो सकता ।
आदमी कोई काम करता है तो उसके साथ-साथ तनाव भर जाता है । "उसके कारण असंतुलन पैदा होता है। सबसे बड़ा कारण है तनाव । मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव---ये तनाव असंतुलन पैदा करते हैं, अतिश्रम, अतिचिंतन, अतिआवेग-ये सारे असंतुलन पैदा करते हैं, तनाव पैदा करते हैं, कार्य में असंतुलन पैदा करते हैं। एक ग्रन्थि है थायराइड, जो कंठ के मध्य की ग्रन्थि है । उसका बहुत महत्त्वपूर्ण काम होता है। हमारी बहुत सारी आदतों, वृत्तियों का वह नियंत्रण करती है और शरीर का भी नियंत्रण करती है। चयापचय की सारी क्रिया थायराइड के द्वारा संपादित होती है । शरीर में प्रतिक्षण करोड़ों-करोड़ों शेल मरते हैं, करोड़ों-करोड़ों जन्मते हैं। यह चयापचय की जो क्रिया है वह सारी क्रिया थायरोक्सन के द्वारा सम्पादित होती है । तनाव पैदा हुआ, तनाव के कारण संतुलन बिगड़ गया। परिणाम यह होता है कि या तो कम स्राव या ज्यादा स्राव होगा। यदि कम स्राव होगा तो आलस्य, थकान, प्रमाद-ये सारे घेरे रहेंगे। ज्यादा स्रावा होगा तो भी तनाव पैदा होगा, निराशा होगी, दुश्चिताएं होंगी। ये सारी क्रियाएं असंतुलन के कारण होती हैं । प्रजनन ग्रन्थि है गोनाड्स । उसका स्राव ज्यादा होता है तो आदमी ज्यादा कामुक बन जाता है । स्राव कम होता है तो आदमी -नपुंसक बन जाता है । असंतुलन के कारण बहुत सारी स्थितियां पैदा होती हैं । असंतुलन का मुख्य कारण बनता है मानसिक तनाव । ध्यान की पूरी
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