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________________ शिथिलीकरण और जागरूकता हमारा संसार परिवर्तनशील है । इसमें एक भी द्रव्य, एक भी तत्त्व ऐसा उपलब्ध नहीं होता जो न बदलता हो । हर पदार्थ बदलता है, हर द्रव्य बदलता है। हम बदलने को पसन्द करते हैं। कोई भी बच्चा बच्चा नहीं रहता, युवा बनता है, और आगे से आगे बदलता चला जाता है। बदलना एक अनिवार्य प्रक्रिया है। आदमी जैसा है वैसा रहना नहीं चाहता। वह अपने स्वभाव को बदलना चाहता है । आचरण को, व्यवहार को, सम्बंधों को बदलना चाहता है । दूसरे भी चाहते है, धर्मगुरु चाहते हैं-उनके अनुयायी बदले । सत्ता पर बैठे लोग चाहते हैं कि प्रजा बदलें। जनता चाहती है कि सिंहासन पर बैठने वाले बदलें। सब एक-दूसरे से बदलने की अपेक्षा रखते हैं। पर स्वयं को बदलना कोई नहीं चाहता। स्वयं बदलना जहां सम्भव नहीं होता वहां नियन्त्रण आता है। पर नियन्त्रण करने वाले भी जानते हैं, कठोर दण्ड व्यवस्था करने वाले भी जानते हैं कि यह पर्याप्त उपाय नहीं है। इससे सब कुछ ठीक नहीं होता । आखिर में वे भी बदलने की बात पर बल देते हैं। आज राजनीति के क्षेत्र में मस्तिष्क को बदलने पर बहत बल दिया जाता है । पुराना शब्द है-हृदय-परिवर्तन और आज का शब्द है--मस्तिष्कपरिवर्तन । यह ठीक है कि हृदय बदले । पर हृदय क्या है और उसका अर्थ क्या है, यह विमर्शनीय विषय है। कभी-कभी शब्दों से बड़ी उलझन पैदा हो जाती है । जो हार्ट धड़कता रहता है और रक्त को फेंकता रहता है उसे हम हृदय कहते हैं । और वह बदले, इस अर्थ में हमारे सारे अर्थ की अभिव्यक्ति होती है । किन्तु आज की खोजों ने यह बात सुनकर साफ कर दी कि यह कोई बहुत महत्त्वपूर्ण अंग नहीं है, उसका काम इतना ही है कि रक्त को फेंकना और धड़कते रहना, जीवन को चलाना । हमारे आचार-व्यवहार में उसकी कोई नियामकता नहीं है और उसका इसके अतिरिक्त कोई मूल्य भी नहीं है । सचमुच एक प्रश्न है कि हृदय किसको माना जाए ? मुझे लगता है कि यह शब्द का भ्रम हआ है । प्राचीन अर्थ में भी हृदय का अर्थ हार्ट नहीं था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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