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________________ १५६ एकला चलो रे कुशलता भी बढ़े । गीता में कहा गया है—'योगः कर्मसु कौशलम्' । इसका मतलब क्या है ? कौशल का पहला सूत्र है कि शरीर और मन का एक काम में लगना । इससे कुशलता बढ़ेगी । जब दोनों अलग-अलग काम करेंगे, कुशलता नहीं आएगी। कोई भी शिल्पी, कोई भी चित्रकार ऐसा नहीं है कि बढ़िया से बढ़िया उसने चित्र बनाया हो, अंगुलियां चली हों और मन किसी और दिशा में भटका हो । ऐसा हो नहीं सकता। कौशल की वृद्धि का यह पहला सूत्र है। कुछ व्यक्ति ऐसा सोचते हैं कि शरीर-प्रेक्षा के साथ-साथ भेद-विज्ञान शरीर अन्य है, आत्मा अन्य है) का अभ्यास नहीं होगा तो यह प्रेक्षा मात्र स्थूल दर्शन बनकर रह जाएगी। ___ यह भेद-विज्ञान वाली बात हम बार-बार दुहराएं, मुझे कोई जरुरी नहीं लगता । ठीक है, जब हम शरीर का दर्शन करते हैं और प्राण-धारा को देखने का अभ्यास करते हैं तो बात समझ में आती है । यह जो हम कहते हैं कि आत्मा अलग है, शरीर अलग है, यह मात्र हमारी मान्यता है । हम कैसे स्वीकार कर लेंगे जब आत्मा के बारे में हमारी कोई जानकारी नहीं, हमारा साक्षात्कार नहीं । हम सोचें, एक मान्यता को ही हम एक नये संस्कार के रूप में तो नही बदल रहे हैं ? भेद-विज्ञान का अर्थ, मेरी दृष्टि में, दूसरा होना चाहिए । हमने प्रेक्षा के सन्दर्भ में भेद-विज्ञान का अर्थ दूसरा किया है । वह यह है कि शरीर और प्राण के प्रवाह की भिन्नता का अनुभव करने का मतलब है भेद-विज्ञान । शरीर अलग है और शरीर के भीतर प्रवाहित होने वाली प्राणधारा अलग है। यहां से हमारा भेद-विज्ञान शुरू होना चाहिए । जब तक हमने शरीर को और प्राण-प्रवाह को भिन्न नहीं समझा तब तक आत्मा की बात तो बहुत दूर है। बहुत बार हमारी ऐसी वृत्तियां होती हैं कि दरवाजे में तो घुसना ही नहीं चाहते और भीतर में चले जाना चाहते हैं। यह बात सम्भव नहीं होती। एक क्रम होना चाहिए। क्रम यह है कि शरीर से सूक्ष्म है प्राण । हम शरीर और प्राण के भेद का अनुभव कर सकें और जो शरीर-प्रेक्षा के द्वारा प्राण के प्रकम्पनों को पकड़ने का प्रयास है, यह भेदविज्ञान का ही प्रयास है । इसलिए इसे अलग से दुहराना आवश्यक नहीं लगता। प्रेक्षा में एक क्रम निश्चित है-शरीर, प्राण-विद्युत-बायोइलेक्ट्रीसिटी, जैविक विद्युत्, फिर तैजस शरीर, जहां से सारी विद्युत् आ रही है, फिर कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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