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एकला चलो रे भावक्रिया की साधना होती है प्रेक्षा के अभ्यास से । हम धीरे-धीरे देखने का अभ्यास शुरू करें। आप यह न मानें आज आपने अभ्यास शुरू किया और आज ही दोनों पत्नियों का पीछा छूट जाए । ऐसी कल्पना न करें । आपने आज चलना शुरू किया है, काम शुरू किया है। निश्चित माने आज जो पैर उठा है, वह उठता रहा तो दोनों से पल्ला छूट जाएगा। अतीत से भी पल्ला छुटेगा और भविष्य से भी छूटेगा। न स्मृतियां सताएंगी और न कल्पनाएं सताएंगी। आप वर्तमान में रह सकेंगे । मनोबल को बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय है-वर्तमान में जीना, शरीर और मन में संतुलन स्थापित करना, नाड़ी-संस्थान और मस्तिष्क में ज्ञानतन्तुओं और क्रिया-- तन्तुओं में संतुलन स्थापित करना । ___ यह संतुलन हमारी शक्ति को बचाता है। हमारी शक्ति का व्यय होता है असंतुलन के कारण । कभी इतने उलझ जाते हैं भविष्य में कि वर्तमान में काम करना छूट जाता है। हाथ कुछ भी नहीं लगता, कोरी कल्पना में उलझ जाते हैं । कभी इतने उलझ जाते हैं स्मृतियों में कि जो आज करने का काम है, वह बिलकुल छूट जाता है । हमारी शक्ति व्यर्थ में खर्च होती है । यदि हम अप्रमाद की साधना कर सकें, प्रेक्षा का प्रयोग कर सकें, देखना सीख लें तो शक्ति का व्यर्थ व्यय भी रुक सकता है और साध्य भी प्राप्त हो सकता है । देखने का मतलब है-न स्मृति, न चिन्तन, न कल्पना, कोरा देखना । देखना, अनुभव करना। हमारे सामने दो जगत् हैं--एक अनुभव का जगत् और एक बुद्धि का जगत्-स्मृति और चिन्तन का जगत् । अनुभव में हमारी शक्ति का व्यय नहीं होता। इसलिए नहीं होता कि अनुभव में नाड़ी-संस्थान को बहुत काम नहीं करना पड़ता । शक्ति का व्यय तब होता है जब नाड़ीसंस्थान को सक्रिय होना पड़ता है।
एक आदमी कोई लेख लिखता है, निबन्ध लिखता है, कविता बनाता है और कोई बात सोचता है तो उसे काफी शक्ति लगानी पड़ती है । कोई भी आदमी, बड़ा से बड़ा लेखक, पांच घंटा निरंतर लिखता जाए तो उसे बड़ी थकान का अनुभव होगा । एक वकील, जिसको सारे केस का अध्ययन करना है, अगर वह दस घंटा कोई केस पढ़ता चला जाए, पूरे दिन और रात पढ़ता चला जाए तो फिर दूसरे दिन उसे सोचना ही पड़ेगा। क्योंकि चिन्तन से नाड़ी-संस्थान पर दबाव पड़ता है। स्मृति, चिन्तन या दबाव से मनुष्य की शक्ति खर्च होती है । अनुभव से कोई शक्ति खर्च नहीं होती । नाड़ी
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