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________________ शरीर और मन का सन्तुलन १५३ सीधी बात है । पर वर्तमान में जीना जितनी सीधी बात है, उतनी ही टेढ़ी बात है । वर्तमान में कैसे जीयेंगे ? अतीत हमारा पीछा नहीं छोड़ता । भविष्य हमारा पल्ला नहीं छोड़ता। दोनों पकड़े हुए हैं। एक आगे खींच रहा है, एक पीछे खींच रहा है । इसी तथ्य को स्पष्ट करती है यह कहानी पुराने जमाने की बात है । एक आदमी के दो पत्नियां थीं। दो से विवाह करने का मतलब है कि सिरदर्द मोल ले लेना। एक पत्नी भी बड़ी मुसीबत है । जहां दो हो जाएं, फिर उस मुसीबत का कहना ही क्या ? वही मुसीबत थी। दोनों में झगड़ा शुरू हो गया। पति को भी बांटना पड़ा । पति बंट गया । एक दिन एक के पास भोजन करता, दूसरे दिन दूसरी के पास भोजन करता। मकान को भी दुमंजिला बना लेना पड़ा। एक मंजिल में एक पत्नी रहती और दूसरी में दूसरी रहती। सीढ़ियां भी नहीं बनाईं तब; क्योंकि बार-बार चढ़ना-उतरना होगा तो और ज्यादा लड़ाइयां होंगी। नसैनी लगा दी । एक दिन ऐसा हुआ कि पति काम में व्यस्त था । व्यस्तता से आया, ध्यान नहीं रहा । बारी थी नीचेवाली स्त्री की और सेठ ऊपर चढ़ने लगा, चढ़ गया, कुछ चढ़ गया। ऊपर वाली खड़ी थी। उसने देख लिया । आकर खड़ी हो गई । सोचा-आज बड़ा अच्छा हुआ, बिना बारी पति आ रहा है । बहुत प्रसन्न हुई। नीचे वाली को पता चला कि बारी तो है मेरी और पति ऊपर जा रहा है । वह नीचे से आ गई । पति तो नसनी पर खड़ा है, एक पत्नी ऊपर से हाथ खींच रही है और एक नीचे से टांग खींच रही है । बड़ी विचित्र स्थिति बन गई। पति बीच में लटक रहा है। न ऊपर जा पा रहा है, न नीचे जा पा रहा है । एक ओर टांग खींची जा रही है और दूसरी ओर हाथ खींचा जा रहा है । बेचारा बीच अधर में लटक रहा है। हमारी भी यही स्थिति है। हम वर्तमान में रहना चाहते हैं, वर्तमान में जीना चाहते हैं । केवल काम करना चाहते हैं और कुछ नहीं करना चाहते । किन्तु एक अतीत और एक भविष्य-ये दोनों पत्नियां दोनों ओर पल्ला खींच रही हैं। वर्तमान की स्थिति में रह नहीं पाते । वर्तमान में रहने के लिए जरूरी है अतीत और भविष्य की पत्नियों से पल्ला छुड़ाएं। कुंवारे ही रहें, विवाह न करें । तब वर्तमान में रह सकते हैं । कोई भी विवाहित हो जाए और फिर वर्तमान में रहे, यह संभव नहीं । कभी संभव नहीं है । हमें वर्तमान में रहने के लिए, अतीत और भविष्य से पल्ला छुड़ाने के लिए, अप्रमाद की साधना, भावक्रिया की साधना करनी होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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