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एकला चलो दें
उतना बड़ा ऑफिस समूचे राजस्थान की पुलिस का नहीं। उतना बड़ा ऑफिस समूचे राजस्थान के तंत्र का नहीं । राजस्थान को मैं छोड़ दूं, पूरे हिन्दुस्तान की सरकार का भी इतना बड़ा तंत्र काम नहीं करता जितना हमारे एक मस्तिष्क में एक तंत्र काम करता है । कहां हैं करोड़ों कर्मचारी सरकार के पास ? मस्तिष्क में करोड़ों न्युट्रोन सक्रिय हो जाते हैं ।
ज्ञानतन्तुओं और कर्मतन्तुओं का एक योग, एक सन्तुलन होता है । किन्तु हम इस संतुलन को बिगाड़ देते हैं या बिगड़ जाता है, तब एक व्यव - धान पैदा होता है । हमारी शक्ति का व्यय होता है । प्रेक्षा ध्यान का एक बड़ा उपयोग होता है— ज्ञानतन्तुओं और कर्मतन्तुओं में संतुलन स्थापित करना, भावक्रिया करना । कितना सीधा उत्तर था कि केवल खाओ, केवल बोलो, केवल सोओ। क्या हम केवल सोते हैं ? कौन व्यक्ति है, जो कहता है कि मैं केवल सोता हूं, कोरी नींद लेता हूं ? नींद में तो इतने जाले बिछ जाते हैं. सपने पर सपने रात भर सताते हैं । कौन आदमी कहता है कि मुझे एक वर्ष में कोई सपना नहीं आया ? भारत के शरीरशास्त्री तो बतलाते हैं कि हर व्यक्ति को रात्रि में कम से कम दो चार-पांच बार सपने तो आते ही हैं, पता चले या नही । कौन कह सकता है कि मैं कोरा सोता हूं ? कौन कह सकता है कि मैं कोरा खाता हूं ? खाते समय कितनी बातें याद आती हैं । कौन कह सकता है कि मैं कोरा चलता हूं ? आदमी चलता है । चलते-चलते लड़खड़ाने लग जाता है । न जाने कितनी बातें सताने लग जाती हैं । नींद भी आने लग जाती है । चलते-चलते नींद भी सताने लग जाती है । यह समस्या है।
हमारी कोई भी क्रिया कोरी अप्रमाद की क्रिया नहीं है । जागरूकता की क्रिया नहीं है । केवल क्रिया नहीं है । मिक्श्चर है । सारा मिलावट ही मिलाहै । बाजार में मिलावट होती है तो हमें बड़ा अटपटा लगता है । पर हम मनुष्य की प्रकृति को देखें, मिलावट तो जन्म से ही है । गर्भ में ही वह मिलावट को सीख लेता है । मिलावट के साथ ही पैदा होता है ।
ध्यान शोधन की प्रक्रिया है । ध्यान के द्वारा हम इस मिलावट को समाप्त करें | विचार में मिलावट न हो । स्वभाव में मिलावट न हो । वृत्तियों में मिलावट न हो। यह हमारी मानसिक मिलावट बाजार में मिलावट नहीं होगी । जब तक मन में मिलावटें होती रहेंगी, हजार कानूनों के बन जाने पर भी बाजार की मिलावट नहीं मिटेगी । इस
मिटेगी तो फिर
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