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शरीर और मन का सन्तुलन
१४६ स्वरयंत्र ही वाणी का उद्गम है। स्वरयंत्र के द्वारा हमारी वाणी प्रस्फुटित होती है, हमारा नाद व्यक्त होता है, उसका स्फोट होता है। स्वरयंत्र ही है बारूद । यदि मस्तिष्क न हो शरीर में तो मन का अस्तित्व कहां से होगा ? मन का अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं है। दार्शनिक भाषा में इस प्रश्न पर बहुत चिन्तन हुआ है। बहुत गहरा चिन्तन हुआ कि मन शरीर से भिन्न नहीं है । मन की सारी सामग्री, वचन की सारी सामग्री शरीर के द्वारा उपलब्ध कराई जाती है । शरीर वचन को व्यक्त करता है और शरीर ही मन को अभिव्यक्ति देता है। तो वास्तव में मन और वचन, ये दोनों शरीर से भिन्न नहीं हैं । हमारा मूल आधार बनता है हमारा शरीर । शरीर और मन के सन्तुलन का अर्थ होता है-मस्तिष्क और शरीर के शेष हिस्सों का संतुलन । हमारे शरीर में नाड़ी-संस्थान में दो प्रकार के नर्स होते हैं-सेंसरी नर्स और मोटार नर्क्स । ज्ञानतन्तु और कर्मतन्तु । इन ज्ञानतन्तुओं और कर्मतन्तुओं में संतुलन होता है तो हमारी भावक्रिया होती है। ज्ञानतन्तु और कर्मतन्तुओं का संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारी सारी क्रिया गड़बड़ा जाती है। हमारे कर्म गड़बड़ा जाते हैं। ज्ञानतन्तु नियंत्रण करते हैं और कर्मतन्तु क्रिया का संपादन करते हैं। मेरी इच्छा हुई मक्खी को उड़ाऊं। हाथ उठेगा
और मक्खी को उड़ा देगा । क्या यह काम कर्म तन्तुओं ने किया है ? किया है, निश्चित ही किया है। कर्मतन्तुओं ने मक्खी उड़ाने का काम किया है । पर क्या ज्ञानतन्तुओं का इसमें योग नहीं होता तो कर्मतन्तु ऐसा कर पाते ? जब इच्छा पैदा हुई वह ज्ञानतन्तुओं में पैदा हुई कि मक्खी को उड़ाऊं। वह इच्छा मस्तिष्क में पहुंची, ज्ञानतंतुओं के केन्द्र में पहुंची, इच्छा के केन्द्र में पहुंची। वहां से निर्देश मिला कर्मतन्तुओं को कि अपना काम करो, मक्खी को उड़ाओ। हाथ उठा, उंगलियां उठी और मक्खी को उड़ाया। यह कार्य सम्पादन किया इन कर्मतन्तुओं ने, किन्तु सारा नियंत्रण कर रहे हैं हमारे ज्ञानतन्तु । मस्तिष्क उसका सारा नियंत्रण कर रहा है। ज्ञान के द्वारा सारे निर्देश प्राप्त हो रहे हैं। छोटी-सी बात लगती है, मन में इच्छा पैदा हुई, हाथ उठा, उंगलियां उठी, मक्खी को उड़ा दिया । पर इस छोटी-सी क्रिया के सम्पादन में कितने लाखों-लाखों, करोडों-करोड़ों शेलों को काम करना पड़ा है, सक्रिय होना पड़ा है। हमारी कितनी शक्ति उसमें लगती है ? अगर मस्तिष्क के ज्ञानतन्तुओं और कर्मतन्तुओं की सूक्ष्म संरचना को हम जानें तो हमें पता चलेगा कि ऐसा करने में कितना बड़ा ऑफिस काम कर रहा है ।
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