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________________ -१४२ एकला चलो रे सबसे बड़ा और अपने आपको परमात्मा मानना कितना बड़ा अहंकार । बहुत बड़ा अहंकार होता है। किन्तु एक नियम को समझ लें कि एक ऐसा पद भी है जहां सारे अपद हो जाते हैं, सारा अहंकार विलीन हो जाता है। कई वर्ष पहले आचार्यजी ने एक बहुत सुन्दर बात कही थी, जो आज भी याद है । तीस वर्ष के बाद भी याद है । अनायास प्रवाह में प्रवचन करते-करते आचार्यवर ने कहा---केवलज्ञानी होता है, वह सर्वज्ञ होता है। केवलज्ञान सबसे उत्कृष्ट ज्ञान होता है। वह अहंकार करने का अधिकारी है। वह अहंकार कर सकता है। किन्तु वह अहंकार करता नहीं। जो छोटे होते हैं, उन्हें अहंकार करने का अधिकार नहीं, वे अहंकार में उलझ जाते हैं। मैं इतना पढ़ालिखा, इतना बड़ा विद्वान, प्रोफेसर, मैंने पी-एच० डी० किया है, डी० लिट० किया है, आदि-आदि किया है । सारे लोग उलझ जाते हैं। जिसको अहंकार करने का अधिकार, वह अहंकार करता ही नहीं और जिन्हें अहंकार करने का अधिकार नहीं, वे सारे लोग अहंकार में उलझ जाते हैं। जितने बीच के पद हैं, वे सारे अहंकार पैदा करने वाले हैं। यह परमात्मा का पद ऐसा है, जो अपने आप में अपद है और जहां सारे अहंकार विलीन हो जाते हैं। सोऽहं-जो परमात्मा है, वह मैं हूं। यह एक साधना का सूत्र है, जो श्वास के साथ जुड़ा हुआ है। जयाचार्य ने आज से सौ वर्ष पहले एक ग्रंथ लिखा। उन्होंने ध्यान की अनेक पद्धतियां बताई । किन्तु सबसे पहली पद्धति बताई है, सोऽहं का जाप । मन्द श्वास लें । श्वास को मंदा कर दें, लम्बा कर दें, एक ही बात है । श्वास का लम्बा करना या मंद करना । और श्वास की ध्वनि को पकड़ें । श्वास जब लेते हैं तो ध्वनि होती है—'सो' और जब श्वास निकलती है तब ध्वनि होती है-'हं'। यह श्वास का शब्द है 'सोहं'। स्वाभाविक शब्द है। जो लोग दीर्घ श्वास की प्रेक्षा कर रहे हैं, ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं, वे अनुभव करें कि श्वास आ रहा है, श्वास जा रहा है। इसका अभ्यास करते-करते, फिर वे करें कि श्वास ले रहे हैं तो 'सो' की ध्वनि हो रही है, श्वास निकाल रहे हैं तो 'ह' की ध्वनि हो रही है। यह 'सोऽहं' श्वास की ध्वनि है। यह प्रतीक है श्वास की ध्वनि का। 'सोऽहं' का एक अर्थ है—जो परमात्मा है, वह मैं हैं। यदि 'सोऽहं' के ध्यान का अभ्यास आपका लम्बा हो चले, उठतेबैठते, जागते-सोते, खाते-पीते आपका ध्यान अटक जाए कि श्वास चल रहा है और 'सोऽहं' का अनुभव हो रहा है तो मनोबल को क्षीण करने वाली सम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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