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अपने प्रभु का साक्षात्कार
परमात्मा लुप्त हो जाता है, छिप जाता है, चला जाता है। जिस क्षण में हमारी चेतना में समता का अनुभव होता है, न राग, न द्वेष, न दीनता, न अहंकार, न कोई छोटा, न बड़ा—यह समता की चेतना ही परमात्मा है । परमात्मा कोई ऊपर से नहीं आता, आकाश से नहीं आता। न किसी धरती से निकलता है । अपनी चेतना में जब-जब समता का अवतरण होता है, वहीं है हमारा परमात्मा ।
जैन आचार्यों ने जिस नमस्कार महामंत्र की चर्चा की, उसे महामंत्रों की कोटि में इसलिए मानता हूं कि उन्होंने परमात्मा की बहुत यथार्थ व्याख्या हमारे सामने प्रस्तुत की । पांच परमात्मा हैं-अर्हत् परमात्मा, सिद्ध परमात्मा, आचार्य परमात्मा, उपाध्याय परमात्मा और साधु परमात्मा। इतना व्यापक अर्थ दे दिया कि साधु यानी साधना करने वाला हर व्यक्ति परमात्मा है । जो व्यक्ति अपनी चेतना की साधना करता है, वह हर व्यक्ति परमात्मा है। साधना का सूत्र है समता । जिसने समता का मूल्यांकन किया है, जिसने समता को जीना सीखा है और इन राग-द्वेष की ग्रंथियों, हीनता और अहंकार से ऊपर उठकर समत्व का अनुभव किया है, वह हर व्यक्ति परमात्मा है। समता के क्षण का जो अनुभव करता है, वह परमात्मा का दर्शन करता है। यह न मानें कि इस जमाने में परमात्मा का दर्शन नहीं हो सकता। बहुत सारे लोग कहते हैं कि सतयुग में तो परमात्मा का दर्शन होता था, आज परमात्मा का दर्शन नहीं होता । सतयुग में तो भगवान् बनते थे, अवतार बनते थे, आज कोई अवतार नहीं बनता। क्यों नहीं बनता ? क्या काल इतनी भेदरेखा खींचता है ? एक काल में तो वह घटना घटित हो सकती है, दूसरे काल में नहीं हो सकती । अगर देश और काल में भी इतना पक्षपात हो जाएगा तो दुनिया में निष्पक्ष और तटस्थ कोई व्यक्ति मिलेगा ही नहीं। देश और काल, इसमें कोई पक्ष नहीं होता । सारी घटनाएं जो सतयुग में घटित होती थीं, वे आज भी घटित हो सकती हैं और मुझे लगता है, सतयुग और कलियुग की भेदरेखा खींचकर हमने मनुष्य को बहुत पीछे ढकेल दिया । इतना पीछे ढकेल दिया, हमारी चेतना इतनी प्रतिबद्ध हो गई कि हमारे सामाने गढ़ा-गढ़ाया एक उत्तर है कि भई ! आज तो कलियुग है, यह नहीं कर सकते । अरे भाई, बुरे आचरण क्यों करते हो ? आज तो कलियुग है। नीचे क्यों जाते हो ? आज तो कलियुग है। एक ऐसा बहाना मिल गया नीचे जाने का कि हर बुराई कलियुग की ओट में की जा सकती है। यह जमाने की दुहाई, कलियुग
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