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एकला चलो रे
कार बढ़ता है। एक लखपति को करोड़पति देखता है। अहंकार बढ़ता है। करोड़पति को अरबपति देखता है तो उसे बहुत छोटा लगता है। अहंकार बढ़ता है। एक कर्मचारी को उसका बड़ा अधिकारी देखता है। अहंकार बढ़ता है, उसे बड़ा अधिकारी देखता है तो अहंकार बढ़ता है। यानी अपने से छोटे को देखते जाओ, अहंकार बढ़ने का बड़ा उपाय है। किन्तु जब अपने से. ऊपर के लोगों को देखना शुरू करो तो हीनता की भावना बनी रह जाएगी। हर आदमी दरिद्र होता है। जब एक करोड़पति बिड़ला-टाटा को देखता है तो अपने आपको कुछ भी नहीं लगता। वह अपने को गरीब मानने लग जाता
___ पदार्थ को देखने से, पर को देखने से दो अवस्थाएं फलित होती हैंअहंकार या हीनता की भावना। इसके सिवाय और कोई भी परिणाम नहीं आता । जब तक हमारी दृष्टि 'पर' में उलझी रहेगी, जब तक हमारी दृष्टि पदार्थ में उलझी रहेगी, तब तक इस हीनता की ग्रंथि को, अहंकार की ग्रंथि को नहीं रोका जा सकता। ममकार भी बढ़ता है । पदार्थ के प्रति दृष्टि जाती है और ममत्व बढ़ जाता है। व्यक्ति के प्रति समारी दृष्टि जाती है और ममत्व बढ़ जाता है। ममत्व-हीनता और अहं की ग्रंथि को समाधान देने का एक उपाय खोजा गया अध्यात्म के आचार्यों के द्वारा, और वह उपाय है स्व-दर्शन । 'कभी-कभी तो अपने भीतर भी झांक लिया करें ।' स्व को देखने का, अन्तर्दर्शन का, अपने आपको देखने का परिणाम होता है, समता या परमात्म-दर्शन । __ भारतीय दर्शन में परमात्म-दर्शन की बहुत बड़ी चर्चा है। बहुत लोग कहते हैं कि परमात्मा का दर्शन हो। एक बहन ने कहा कि मुझे परमात्मा का दर्शन करना है। भगवान् का दर्शन करना है। मैंने कहा-कर सकती हो । उसने कहा-कैसे करू ? बड़ी उलझी हुई बात है। परमात्मा बड़ा सूक्ष्म है, अतीन्द्रिय है । जिस व्यक्ति की अतीन्द्रिय चेतना जागृत नहीं होती, वह परमात्मा को कैसे देख सकता है ? पर निश्चित मानें कि हमारी दुनिया में उपायों की कोई कमी नहीं है। कोई खोजे तो हर बात का उपाय है । बीमारी है तो उसकी दवा भी है। चिकित्सा भी है। उपाय भी है। परमात्मा को देखने की भी एक पद्धति है। यदि आपको परमात्मा का दर्शन करना हो तो अपना दर्शन करें। परमात्मा के दर्शन का एक सीधा उपाय है, जिस क्षण में हमारे मन में हीनता या अहंकार की वृत्ति होती है, उस समय हमारा
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