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________________ एकला चलो रे साथ, चेतना के बदलने के साथ श्वास का स्पर्श बदलता है, श्वास का रस बदलता है, श्वास की गंध बदलती है और श्वास की ध्वनि भी बदलती है। ये सारी चीजें बदलती हैं। जैन आचार्यों ने एक बात पर प्रकाश डाला था कि तीर्थंकर के शरीर में बहुत सुगंध फुटती है, उनके श्वास में बहुत मधुर गंध होती है, उनके शरीर में से मधुर गंध निकलती है। यह एक लक्षण बन गया था सिद्धयोगी का कि जिसकी साधना सिद्ध हो रही है, उसकी गंध को पहचान लो। शरीर में से किस प्रकार की गंध निकल रही है, निःश्वास में से किस प्रकार की गंध निकल रही है। यह श्वास अतीत और वर्तमान की व्याख्या करने वाला तथा भविष्य को निरूपित करने वाला जीवन का एक बहुत बड़ा तत्त्व है, पर हम स्वयं सोचें कि क्या हमने श्वास को उचित मूल्य दिया है ? हमारी दृष्टि में जितना रोटी का मूल्य है, जितना पानी का मूल्य है, उतना श्वास का मूल्य नहीं है। खाए बिना हम विश्वास नहीं करते कि जीवित रह सकेंगे? पीए बिना हमारा विश्वास नहीं कि हम स्वस्थ रह सकेंगे? संतुलित भोजन की चर्चा करते हैं। पानी की हम चर्चा करते हैं। दवा पर भी हमारा विश्वास है। पर श्वास पर हमारा कोई विश्वास नहीं। यदि हमारा श्वास पर विश्वास होता तो हमें रोटी-पानी से अधिक चिन्ता श्वास की होती। किन्तु दुनिया का एक नियम है कि जो ज्यादा मूल्यवान होता है, उसका उतना ही कम मूल्य आंका जाता है। जो जितना अनिवार्य होता है, उसका उतना ही कम मूल्य आंका जाता है। जीवन के लिए रोटी और पानी की उतनी अनिवार्यता नहीं है, जितनी अनिवार्यता श्वास की है, पर हमारी दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं है। हमारे सामने एक समस्या है-श्वास का अवमूल्यन । इससे आगे की समस्या है—प्राण का अवमूल्यन । श्वास का बहुत मूल्य है। किन्तु श्वास से भी अधिक मूल्य है हमारी प्राणधारा का। प्राण है तो श्वास है। यदि प्राण नहीं है तो श्वास होगा ही नहीं। प्राण श्वास का संचालन करता है, श्वास प्राण का संचालन नहीं करता। प्राण श्वास से ऊपर का तत्त्व है। प्राण से भी अधिक मूल्य है हमारी चेतना का । चेतना है तो प्राणशक्ति निर्मित होती है, और चेतना नहीं है तो प्राण का निर्माण नहीं होगा, श्वास का संचालन नहीं होगा। ये तीन तत्त्व-श्वास, प्राण और चेतना हमारे सामने हैं। इन तीनों को देखने की अन्तर्दृष्टि का विकास मनोबल के विकास का पहला सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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