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अपने प्रभु का साक्षात्कार
छोटा बना देते हैं । यह कभी नहीं हो सकता कि लम्बा श्वास चले, दीर्घ श्वास चले और आवेग भी आ जाए। दोनों घटनाएं एक साथ घटित नहीं हो सकतीं ।
श्वास का हमारे जीवन के साथ सम्बन्ध है, आदतों के साथ सम्बन्ध है । श्वास-परिवर्तन के साथ सारी बातें सम्बन्धित हैं । अभी तक आप केवल श्वास का अनुभव कर रहे हैं । श्वास आ रहा है। श्वास जा रहा है । जैसे-जैसे अभ्यास की पटुता बढ़ेगी, फिर आपको दूसरे अनुभव होंगे । श्वास के स्पर्श का अनुभव करेंगे । श्वास ठंडा आ रहा है या गर्म आ रहा है — इसका भी
अनुभव करेंगे । श्वास की गंध का अनुभव करेंगे । श्वास की गंध सदा एक प्रकार की नहीं रहती । कभी श्वास की गंध बहुत मधुर होती है तो कभी श्वास की गंध बहुत कड़वी होती है। जिस प्रकार का अन्तर्भाव होता है, जिस प्रकार की लेश्या होती है, जिस प्रकार की भावधारा होती है, श्वास की गंध बदल जाती । श्वास की गंध का अनुभव कर, अपने भीतर छिपी स्वास्थ्य - धारा का अनुभव कर सकते हैं ।
एक बात पर विश्वास करें। सूक्ष्म जगत् में जो घटना घटित होती है, वह स्थूल जगत् में बहुत समय के बाद आती है । आज के विज्ञान ने इस सत्य को बहुत उजागर किया है । मनुष्य के शरीर में जो बीमारी पैदा होती है, वह बीमारी उसी दिन पैदा नहीं होती । हमारे सूक्ष्म शरीर में वह बीमारी दो-तीन महीने पहले पैदा हो जाती है और स्थूल शरीर में कुछ महीनों के बाद पैदा होती है । इसी आधार पर आज संभावनाएं आगे बढ़ रही हैं कि भविष्य में सूक्ष्म यन्त्रों के द्वारा बीमारी की पूर्व घोरणाएं होंगी और मृत्यु की भी पूर्व घोषणाएं होंगी । भारतीय योग के आचार्यों ने, अध्यात्म के आचार्यों ने इस दिशा में बहुत काम किया हैं। बीमारी की पूर्व घोषणा, मृत्यु की पूर्व घोषणा की अनेक पद्धतियां उन्होंने विकसित की थीं। योगशास्त्र उन पद्धतियों का बहुत लम्बा विवरण प्रस्तुत करते हैं। अपनी छाया का बोध, अपने स्वर का बोध, अपनी आकृति को देखने का बोध - ये सारे बोध भविष्य की सूचनाएं देते हैं । जो कार्य शायद आज यन्त्र नहीं कर पा रहे हैं, वे अपने स्वर के द्वारा होते थे । यहां स्वरों का बहुत सूक्ष्म विकास हुआ था । इस सचाई को हम अस्वीकार नहीं करेंगे कि सूक्ष्म जगत् में घटनाएं बहुत पहले घटित हो जाती हैं, स्थूल जगत् में वे बाद में आती हैं। श्वास की गंध के द्वारा जाना जा सकता है कि शरीर में क्या परिवर्तन होने वाला है । वृत्तियों के परिवर्तन के
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