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एकला चलो रे
मनोबल की चर्चा कर रहे हैं । जीवन की बाह्यदृष्टि होती है तो मनोबल क्षीण होता है । जीवन को देखने की दृष्टि आन्तरिक होती है तो मनोबल का विकास होता है । मनोबल के विकास का पहला सूत्र है—जीवन को देखने की आन्तरिक दृष्टि का विकास ।
श्वास हमारे जीवन का पहला तत्त्व है, गहन तत्त्व है । मुझे प्रतीत होता है, दुनिया के जितने बड़े विद्वान् हैं, पढ़-लिखे लोग हैं, आज के विश्वविद्यालयों की विद्या की अनेक पद्धतियों में जिन्होंने बहुत विकास किया है, उन लोगों ने भी अपने जीवन की गहन गुत्थियों को सुलझाने के लिए श्वास का थोड़ा भी अध्ययन नहीं किया, बड़े ही आश्चर्य की बात है। ___ श्वास का हमारे जीवन के साथ, हमारी आदतों और वृत्तियों के साथ, लेश्याओं के साथ बहुत गहन सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। सामान्य आदमी की धारणा है कि जितने श्वास लेना है, उतना ही जीना है। एक श्वास कम नहीं होगा, एक श्वास ज्यादा नहीं होगा। यह सामान्य धारणा की चर्चा कर रहा हूं। विशेष स्थिति अलग बात है । हम एक मिनट में पन्द्रह श्वास लेते हैं । सामान्य स्थिति में बैठे-बैठे पन्द्रह श्वास लेते हैं। जब चलते हैं, श्वास की संख्या बढ़ जाती है । अठारह श्वास हो जाते हैं। बोलते हैं तो श्वास की संख्या और बढ़ जाती है। बीस श्वास हो जाते हैं। नींद लेते हैं तो श्वास की संख्या और बढ़ जाती है। तीस श्वास हो जाते हैं। आवेश आता है, क्रोध, अहंकार, इस प्रकार की उत्तेजना, वासना जब भरती है तो श्वास की संख्या चालीस, पचास, साठ तक चली जाती है । श्वास की संख्या घटती और बढ़ती रहती है। उसके आधार पर हमारी शक्तियों का भी व्यय कम या अधिक होता है। जितनी श्वास की संख्या ज्यादा होगी, उतना शक्ति का व्यय ज्यादा होगा। जितनी श्वास की संख्या कम होगी, उतना शक्ति का व्यय कम होगा।
दीर्घ श्वास प्रेक्षा के अभ्यास में साधक श्वास लम्बा करता है और उसका अनुभव करता है । वह प्रत्येक श्वास को जानते हुए लेता है। आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि जब चित्त की वृत्ति शांत होती है, तब दीर्घ श्वास होता है। उलटकर कहें तो जब दीर्घ श्वास होता है, तब चित्त की वृत्ति शान्त होती है । जैसे ही चित्त में अशान्ति का उद्गम हुआ, कोई अंकुर फूटा और सबसे पहला प्रभाव श्वास पर होगा । श्वास छोटा होने लग जाएगा। छोटे श्वास में आवेग उतरते हैं । अथवा जब आवेग उतरते हैं तब श्वास को
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