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________________ १२८ एकला चलो रे क्रोध नहीं आ रहा है । अहंकार की स्थिति है पर अहंकार नहीं जाग रहा है। लड़ने का पूरा वातावरण है, पूरी स्थिति है, पर लड़ाकू वृत्ति काम नहीं कर रही है। यह कैसे हो सकता है ? यह सब चेतना के रूपान्तरण के द्वारा ही हो सकता है । मनोबल इतना बढ़ जाता है कि ये सारी स्थितियां अपना प्रभाव नहीं डालतीं। हम दूर क्यों जाएं, आचार्य भिक्षु को ही लें। किसी ने कहा कि आपका मुंह देखने वाला नरक में जाता है। उन्हें यह सुनकर गुस्सा नहीं आया। कोई व्यक्ति आकर कहे कि आपका मुंह देखने वाला नरक में जाता है, क्या गुस्सा नहीं आएगा ? स्वाभाविक है, आना चाहिए । न आए तो अधिक मानता हूं। उस स्थिति में आचार्य भिक्षु ने कहा—'ठीक है, बहुत अच्छी बात है । तुम्हारा मुंह देखने वाला स्वर्ग में जाता है। बहुत अच्छा हुआ, मैंने तुम्हारा मुंह देखा, मैं स्वर्ग में जाऊंगा और तुम अपनी जानो।' यह बात कैसे हो सकती है ? तभी हो सकती है जब चेतना का रूपान्तरण हो जाए । यहां परिस्थितिवाद को एक चुनौती है। लोग विश्वास करते हैं कि जैसी परिस्थिति होती है वैसा आदमी बनता है। मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि परिस्थिति होने पर भी आदमी वैसा नहीं बनता, यदि चेतना वैसी बन जाती है।। आचार्य तुलसी के पास एक भाई आकर बोला-मैं आपसे शास्त्रार्थ करना चाहता हूं। आचार्यश्री ने कहा-किसलिए? कहा-नहीं, करना चाहता हूं। आचार्यश्री ने कहा-~-शास्त्रार्थों का युग बीत गया। पुराना जमाना था, वह अखाड़ों का युग बीत गया । किसलिए करना चाहते हो ? आदमी बहुत भला था, साथ ही ईमानदार भी था। ईमानदार न होता तो मन की बात नहीं कहता । उसने साफ-साफ बात कह दी–मैं आपको पराजित करना चाहता हूं, हराना चाहता हूं। आचार्यश्री ने कहा-इतनी छोटीसी बात के लिए इतना बड़ा शास्त्रार्थ। यह बहुत छोटी-सी बात है, हराने की बात । तुम्हारा उद्देश्य तो यही है कि शास्त्रार्थ कर आचार्य तुलसी को हराना चाहते हो, तो क्यों इतना अडंगा रचते हो भई ? मान लो तुम कि तुम जीते और मैं हारा । बात समाप्त है। क्या परिस्थिति नहीं है कि कोई आदमी आकर कहे कि मैं तुम्हें हराना चाहता हूं और उत्तेजना न आए । यह कोई बात कह दे कि मैं तुम्हें हराना चाहता हूं, वह कब हराएगा, पता नहीं पर ऐड़ी से चोटी तक पसीना आ जाए और साथ-साथ लाली भी छा जाए । बड़ी समस्या होती है। हम इस अन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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