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________________ अज्ञात द्वीप की खोज १२७ प्रभाव, दूसरा हमारी चेतना से आने वाला प्रभाव और उन दोनों को झेलने वाला हमारी ग्रन्थियों का प्रभाव । ये तीन इतने परस्पर सम्बद्ध और जुड़े हुए हैं कि इस तीनों को छोड़कर जीवन की व्याख्या नहीं हो सकती । केवल श्वास के आधार पर जीवन को नहीं समझा जा सकता, केवल प्राण के आधार "पर जीवन की समस्याओं की व्याख्या नहीं की जा सकती। इस महाग्रंथ को नहीं पढ़ा जा सकता जब तक लेश्या की चेतना को हम नहीं जान लेते। हमारी जटिल समस्याएं, जटिल पहेलियां और उलझनें तभी व्याख्यात हो सकती हैं जब हम चेतना के स्तर पर जीवन को समझने का प्रयत्न करें। मनुष्य क्यों क्रोध करता है ? क्यों भय करता है ? क्यों हीनभावना से ग्रस्त होता है ? क्यों अहंकार से ग्रस्त होता है ? क्यों पक्षपात करता है ? क्यों प्रिय और अप्रिय का संवेदन करता है ? क्यों असन्तुलन करता है ? ये सारी स्थितियां, सारी समस्याएं जो व्यक्ति की अपनी समस्याएं हैं, मानसिक समस्याएं हैं--इन सारी समस्याओं की व्याख्या चेतना के स्तर पर ही की जा सकती है । बात है कि मंगल, सूर्य, बुध और बृहस्पति से आने वाले विकिरणों का प्रभाव पड़ता है । यह कोई अन्धविश्वास नहीं है। मैं ज्योतिष को अन्धविश्वास नहीं मानता, बहुत वैज्ञानिक बात है यह। सारे विकिरण प्रभावित करते हैं व्यक्ति को। पर कब करते हैं ? जब हमारी चेतना की स्थिति उसके अनुकूल होती है । यदि हम चेतना की स्थिति को बलवान् बना लेते हैं, उसके प्रतिकूल बना लेते हैं तो विकिरण आते हैं, स्पर्श करते हैं, पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाते । एक ज्योतिषी हस्तरेखाओं को जानने वाला, सुकरात के पास आया और बोला-'मैं आपका हाथ देखना चाहता हूं और आपके भविष्य की घोषणा करना चाहता हूं।' सुकरात ने कहा-'ज्योतिषी ! मेरा भाग्य मैं पलट चुका हूं। मैं मेरे भाग्य का निर्माता बन गया हूं। जब जैसा चाहूं वैसा पलट सकता हूं। तुम क्या देखोगे, मेरी कुण्डली को और क्या देखोगे मेरी हस्तरेखा को! मैं स्वामी हूं।' ___जो व्यक्ति चेतना के स्तर पर अपने आपको बदल लेता है, फिर बाहर का प्रभाव कम होने लग जाता है। ___ ध्यान एक प्रक्रिया है चेतना को बदलने की, चेतना को समझने की और चेतना के रूपान्तर की । हम ध्यान के द्वारा अपनी चेतना का निर्माण करते हैं, उस चेतना का निर्माण करते हैं कि क्रोध की स्थिति है, वातावरण है पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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