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________________ एकला चलो रे होगा ? अमुक स्थिति में क्या होगा? लड़के ने विद्रोह कर दिया तो क्या होगा ? पत्नी ने रोटी बनाना बन्द कर दिया तो क्या होगा? क्या होगा' का कभी अन्त नहीं आता जीवन में । हर व्यक्ति के जीवन में क्या होगा' की आशंका जुड़ी हुई है । कोई दुनिया में दवा नहीं जो इस आशंका को मिटा सके । एक बार मनोबल जाग जाता है ध्यान की शक्ति के द्वारा तो फिर ‘क्या होगा' की बात ही समाप्त हो जाती है । जो होना है सो होगा। कभी होना है तब होगा । आज ही तो नहीं होना है। जब होना है तब होना है। होना भी है या नहीं, पता नहीं, पर रोना-धोना तो आज ही हो गया। नहीं होना है तो फिर उसे होना पड़ेगा। अपनी दुर्वलता के कारण आदमी इस प्रकार की कल्पना करता है, अशुभ कल्पना करता है और नहीं होने वाली घटना को भी शायद निमन्त्रित कर लेता है। जिस प्रकार का मानसिक चिन्तन बार-बार होता है तो न होने वाली घटना को भी घटित होने की सम्भावना हो जाती है । यदि मनोबल मजबूत होता है और उन सारी अशुभ आशंकाओं को टाल देता है तो होने वाली घटना भी टल जाती है। ध्यान एक बहुत बड़ी सचाई है, ध्यान एक बहुत बड़ी शक्ति है और शक्ति के विकास का बहुत बड़ा रहस्य है। हमारी दुनिया में बहुत सारे कारण हैं जो हमारे मनोबल पर इतना प्रभाव जमाए बैठे हैं। दो-तीन कारणों की चर्चा करना चाहता हूं। एक चेतना का जगत्, एक ग्रंथियां और एक सौरमंडल । चेतना को खोजना है तो ग्रन्थियों के स्तर पर खोजना होगा। लेश्या या भावधारा के स्तर पर खोजना होगा । चेतना की एक अवस्था का नाम है-लेश्या । जो चेतना तैजस शरीर के साथ, सूक्ष्म शरीर के साथ काम करती है उस चेतना का नाम है लेश्या और उसे कुछ लोग वृत्ति भी कहते हैं, वृत्तिस्तरीय चेतना । एक भावधारा की चेतना और वह भावधारा की चेतना प्रकट होती है शरीर में और प्रकट होने का तंत्र है-प्रन्थि तंत्र । शरीर में कुछ ग्रन्थियां हैं---पीनियल, पिच्यूटरी, थाइराइड, पेराथाइराइड, एड्रीनल, गोनाड्रस आदि । इन ग्रन्थियों में वह चेतना प्रकट होती है। और वह प्रभावित होती है सौरमंडल के द्वारा। तीन वातें जुड़ जाती हैं—चेतना, ग्रन्थियां और सौरमण्डल । सूर्य सारी ग्रन्थियों को प्रभावित करता है । चन्द्रमा हमारी ग्रन्थियों को प्रभावित करता है। मंगल, बुध, बृहस्पति ग्रन्थियों को प्रभावित करते हैं । तो ये सौरमण्डल के जो तारे हैं, स्टार्स हैं वे ग्रन्थियों को प्रभावित करते हैं। एक बाहर से, सौरमंडल के विकरणों से आने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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