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अज्ञात द्वीप की खोज
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पुराने जमाने की घटना है । एक बादशाह समुद्र की यात्रा कर रहा था। जहाज में सब लोग साथ में बैठे । एक सिपाही भी साथ में था। था सिपाही पर बहुत कमजोर । दूसरों को डराने वाला, पर स्वयं बहुत डरने वाला । अब जहाज चलता है और हिलोरें लेता है। धक्के लगते हैं, कभी ऊंचा और कभी नीचा होता है । सिपाही तो रोने लग गया। बादशाह ने मन्त्री से कहा-'क्यों रोता है ?' 'महाराज, इसे भय लगता है। जैसे ही जहाज हिलता है, वह सोचता है कि प्राण अब गए, अब गए, अब गए ।' यह तो डर रहा है, समझाओ।' समझाया गया । पर समझाने से क्या होगा ? समझाने की बात, शब्द तो हमारे दिमाग तक पहुंचते हैं। जहां डर लगता है, जहां भय लगता है, वहां तो शब्द जाते नहीं । एक मिनट रुकता है और फिर जैसे ही हवा तेज आती है, जहाज उलटता है, पुलटता है, धक्के लगते हैं और वह जोर से चिल्लाने लग जाता है। बादशाह परेशान हो गया, मन्त्री परेशान, सारे लोग परेशान और उसकी चिल्लाहटें कानों को बेध रही हैं । मन्त्री ने सोचा कि क्या करें ? एक उपाय निकाला, एक आदमी को समझाया। कुछ आदमी गए और उसे उठाकर समुद्र में फेंक दिया। फेंका और अब तो चिल्ल-पों शुरू हो गयी, बहुत चिल्लाया, रोने लगा, डूबने लगा। डूबता है, तैरता है, डूबता है, तैरता है । आदमी कूदे, तैराक थे और पकड़कर ले आए। बिठा दिया। वह बिलकुल शांत । बिलकुल रोना शांत । अब जहाज चल रहा है, पर रोना नहीं। बादशाह ने कहा-मन्त्री ! क्या कर दिया तुमने ? क्या हो गया, अब रोना कहां चला गया ? मन्त्री ने कहा-अब नहीं रोएगा। पहले उसे पता नहीं था कि जहाज में कितनी सुरक्षा है । हम अथाह पानी में जहाज में बैठे हैं । अथाह पानी में जहाज कितनी हमारी सुरक्षा कर रहा है यह उसे पता नहीं था। थोड़ा-सा जहाज हिलता था रोता था । जब पानी में डूबने लगा, रोने लगा, मरने लगा और डूबने की स्थिति का अनुभव हुआ तब पता चला कि जहाज का कितना मूल्य होता है ? अब यह नहीं रोएगा।
सचमुच हमारे जीवन में ऐसा होता है कि सुरक्षा को हम असुरक्षा मान बैठते हैं, अपनी कल्पना के कारण, अपने भय की आशंका के कारण । आशंका की वृत्ति बड़ी विचित्र होती है। इतनी प्रकार की आशंकाएं लिये आदमी चलता है । मेरा विश्वास है कि जो व्यक्ति ध्यान में नहीं उतरता और ध्यान के द्वारा सचाई का अनुभव नहीं करता वह व्यक्ति आशंका की समस्या से अपने आपको कभी नहीं छुड़ा पाता । बुढ़ापे में क्या होगा, बीमारी में क्या
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