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एकला चलो रे
बहुत कम लोगों को मिलता है ।
आपने सुना होगा, आचार्य भिक्षु को अनेक परिस्थितियां उनके सामने जटिल थीं । ऐसी स्थितियां कि सामान्य आदमी के लिए जीना भी कठिन होता । पर सब स्थितियों को सह गए । कारण क्या ? मनोबल-बहुत मजबूत मनोबल । शरीर का बल आखिर कितना होता है ? हाड़ और मांस का बल आखिर कितना होता है ? मनोबल ही बड़ा होता है । लोग कहते हैं कि महात्मा गांधी एक मुट्ठी हड्डियों का ढेर था। क्या था? किन्तु कितना बड़ा मनोबल ? इतने बड़े साम्राज्य से निहत्थे होकर सामना किया, क्या कोई शरीर का बल काम दे रहा था ? बिलकुल नहीं । केवल मनोबल । आज तक दुनिया में जितने बड़े-बड़े लोग हुए हैं और जितने काम किये हैं, सब मनोबल के सहारे किए हैं ।
हम इस विषय पर विचार करें कि कौन-सी परिस्थितियां हैं जो मनोबल को क्षीण करती हैं और कौन-सी परिस्थितियां हैं जो हमारे मनोबल को बढ़ाती हैं। ध्यान के द्वारा यदि हमारे मनोबल का विकास नहीं होता है तो मैं मानता हूं कि ध्यान की सार्थकता जीवन में घटित नहीं होगी। ध्यान एक शक्ति है और उस शक्ति के द्वारा अनेक शक्तियों का विकास होता है । उसमें मनोबल का भी विकास होता है। एक समस्या है भय जो हमारे मनोबल को क्षीण करता है। बहुत बड़ा कारण है। पता नहीं कि कितनी कल्पना भय के साथ जुड़ी होती है । अंधेरा मन को दुर्बल बनाता है । मुझे ज्यादा विस्तार देने की जरूरत नहीं। बहुत सारे लोग मानते हैं कि अंधेरा होता है और किस प्रकार की कल्पनाएं मन में उठती हैं । भूत, प्रेत, देवता, और भी न जाने क्या-क्या कल्पनाएं उठती हैं। जिन्हें भय लगता है वे ही जानते हैं । किस प्रकार की स्थितियां आती हैं। जो कमजोर लोग होते हैं, डर तब लगता है। अंधेरे में अकेले होते हैं या बैठे होते हैं बिजली के प्रकाश में । अकस्मात् बिजली चली जाती है उस समय क्या बीतता है, वे ही जानते हैं। आशंकाएं, मन मे इतनी आशंकाएं उठती हैं, कल क्या होगा? मैंने यह क्या कर दिया ? क्या होगा ? अब क्या होगा? कहीं घाटा न लग जाए ? कहीं यह स्थिति न बन जाए ? इतनी अशुभ कल्पनाएं मनुष्य के मन में जन्म लेती हैं कि आदमी निरन्तर उसकी उधेड़बुन में रहता है। जब तक हमें उसकी सचाई का पता नहीं चलता, हम भय से मुक्ति नहीं पा सकते । बहुत बार तो ऐसा होता है कि सुरक्षा भी हमारे लिए भय का कारण बन जाती है । है तो सुरक्षा, पर भय का कारण मान लेते हैं।
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