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अज्ञात द्वीप की खोज
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हमारी दुनिया में न जाने कितनी काल्पनिक समस्याएं होती हैं । यदि हम सच्चाई पर जाएं, तो पता चलेगा कि केवल कल्पना के आधार पर इतनी लड़ाइयां, इतने संघर्ष, इतने मनमुटाव । यदि यथार्थ को खोजते हैं तो TM कुछ भी नही निकलता । कहावत तो यह है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया । इन काल्पनिक समस्याओं में तो चुहिया भी नहीं निकलती । कुछ भी नहीं TM निकलता, कोई आधार ही नहीं मिलता ।
हमारी दोनों प्रकार की समस्याएं हैं -- काल्पनिक समस्याएं और यथार्थ की समस्याएं | ये हमारे मनोबल को कमजोर करती हैं । मन का बल टूटता है । इस परिप्रेक्ष्य में हमें विचार करना है कि मनोबल बढ़ कैसे ? मनोबल कम न हो, इसका विकास कैसे हो ? भय की समस्या, हीन भावना की समस्या, पक्षपात की समस्या और असन्तुलन की समस्या — ये चार इतनी बड़ी समस्याएं हैं जो हमारे जीवन को दुर्बल बनाती हैं, मनोबल को कम करती हैं । और जिस व्यक्ति का मनोबल कम होता है वह व्यक्ति इस दुनिया में अपराधी का जीवन जीता है। दुर्बलता अपने आप में एक अपराध है ।
शक्तिशाली होना अपने आप में एक न्याय है । दुर्बल आदमी न्याय की भीख मांगता रहता है पर दुनिया का नियम है कि आज तक दुर्बल को कभी न्याय नहीं मिला । कितना भी कोई न्याय देने वाला हो पर न्याय देने वाला क्या करे ? दुर्बल आदमी न्याय लेने का पात्र नहीं होता । आज तक दुर्बल भीख मांगता रहा, पर कोई उसे न्याय नहीं दे सका । न्याय शक्ति के साथ जुड़ा हुआ है। जहां शक्ति होती है, अपने आप न्याय मिल जाता है । मान लेना चाहिए कि न्याय और शक्ति दोनों साथ-साथ चलते हैं । दुर्बलता और अन्याय दोनों साथ-साथ चलते हैं । इसमें देने वाले का दोष मैं नहीं मानता ।
दुर्बलता की प्रकृति ही है कि वह न्याय को अपनी ओर आकर्षित भीं नहीं कर पाती । बीच में ऐसे तर्क आ जाते हैं कि सामने वाला व्यक्ति देखता है कि मैं न्याय कर रहा हूं और उसकी दुर्बलता अपने तर्कों का ऐसा जाल बिछाती है कि सारे न्याय कहीं चले जाते हैं, पल्ले में अन्याय ही पड़ता हैं और अत्याचार ही पड़ता है । दुर्वलता अपने आप में एक अपराध है । दुर्बलता अपने आप में एक अन्याय है । बलशाली होना, शक्तिशाली होना, शक्ति का विकास करना, एक न्यायोचित चीज है, सब कुछ है । प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि बल का विकास हो । शरीर के बल का विकास, बुद्धि के बल का विकास, वाणी के बल का विकास, हर आदमी चाहता है । पर मनोबल
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