SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० एकला चलो रे कैल्शियम चाहिए, फास्फोरस चाहिए, पोटेशियम चाहिए, लवण और खनिज चाहिए, वे सारे हैं इसलिए हमारा जीवन चल रहा है, और कहीं स्वास्थ्य में गड़बड़ होती है, दवा लेते हैं और उसकी पूर्ति कर देते हैं, मानते हैं कि हमारा जीवन ठीक चल रहा है। पर इस बात की ओर हम ध्यान दें कि ये सारे तत्त्व, सारे जीवन-स्वत्व भी तभी काम करते हैं जब प्राण की धारा का प्रवाह ठीक चलता है । यदि प्राण की धारा का प्रवाह ठीक नहीं है और प्राणशक्ति चुक जाती है तो संसार की सारी दवाइयां ले लें, किसी की सामथ्र्य नहीं कि जिला सके । किसी की ताकत नहीं कि जी सके। दवाइयां भी तभी काम करती हैं जब प्राणशक्ति ठीक होती है। भोजन भी तभी काम करता हैं जब प्राण की धारा ठीक होती है। स्वास्थ्य भी तभी ठीक काम करता है जब प्राण का प्रवाह ठीक होता है। तो श्वास से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है हमारा प्राण। इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है हमारी चेतना। यह एक अज्ञात द्वीप है, इस समुद्र में कुछ द्वीप ज्ञात हैं और यह एक अज्ञात द्वीप है। इसे अभी तक खोजा नहीं गया । इसे खोजना बहुत बड़ी समस्या है। चेतना को पकड़ना कठिन है और इसलिए कि श्वास स्थूल है, प्राण सूक्ष्म है और चेतना सूक्ष्मतम है । सूक्ष्मतम को खोजना बहुत बड़ी समस्या है। हमने ध्यान का अभ्यास शुरू किया है, केवल प्रीति के लिए नहीं, केवल शिथिलीकरण के लिए नहीं। जब शिथिलीकरण होता है तब एक प्रकार का आनन्द जागता है । जब तनाव कम होता है, शरीर शिथिल होता है, एक प्रकार की प्रीति जागती है, सुख का अनुभव होता है । यदि ध्यान का उद्देश्य मात्र प्रीति, मात्र आनन्दानुभूति हो तो वह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है । ध्यान का उद्देश्य है-सत्य की खोज, अज्ञात की खोज । जो हमने नहीं जाना, जो सच्चाइयां हमारे सामने प्रकट नहीं हुईं, उन सच्चाइयों को जानना ध्यान का उद्देश्य है । सोचते होंगे कि ध्यान करते हैं तो सबसे पहले कायोत्सर्ग, पूरा शिथिलीकरण, आंखें बन्द, आखें मूंद लेते हैं । यदि ध्यान का मतलब समस्याओं से आंखें मूंदना हो तो ध्यान भी एक पलायनवादी प्रवृत्ति बन जायेगी। ध्यान पलायनवाद नहीं है, समस्याओं से आंख-मिचौनी करना नहीं हैं, किन्तु समस्याओं के स्रोत को खोजना, समस्याओं को और अधिक उजागर करना और उनका समाधान खोजना है। बहुत बातें खुली आंखों से नहीं देखी जातीं, वे बातें मुदी आंखों से देखी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy