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एकला चलो रे
भी निरंकुश हो जाएगा। छीना-झपटी, लूट-खसोट पनपेंगे। आदमी की इस निरंकुशता पर नियंत्रण करने के लिए उपाय की खोज की। उसने धर्म का सहारा लिया। धर्म निरंकुशता पर अंकुश लगा सकता है। .
स्वस्थ समाज में केवल काम और अर्थ ही पर्याप्त नहीं होते । उसमें तीसरा पुरुषार्थ धर्म भी होना चाहिए। यह काम पर भी अंकुश रखेगा और अर्थार्जन के साधनों पर भी अंकुश रखेगा। अर्थार्जन के साधन अशुद्ध न हों। आज का आदमी सोचता है-धन कमाना है तो फिर साधन पर विचार क्या करना है ? जिस किसी साधन से धन मिले, उसे काम में लेना चाहिए। इस विचार ने अप्रामाणिकता को जन्म दिया और आज वह चरम शिखर को छ रही है। येन केन प्रकारेण
'येन केन प्रकारेण' वाली उक्ति का चित्र एक संस्कृत कवि ने बहुत ही सुन्दर खींचा है
घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात्, कुर्याद् रासभरोहणम् ।
येन केन प्रकारेण, प्रसिद्धः पुरुषो भवेत् । एक आदमी के मन में प्रसिद्ध होने की भावना जागी, उसने उपाय खोजे । चिन्तनशील व्यक्तियों से विचार-विमर्श किया, पर कोई उपाय हाथ नहीं लगा। उसमें कोई ऐसी विलक्षणता तो थी नहीं कि लोग उसको आंखों पर बिठा लेते। ऐसा कोई उसका अवदान नहीं था कि उसकी प्रमुखता मानी जाती। पर प्रसिद्धि की भूख उसकी बढ़ी। एक व्यक्ति मिला, उसने कहा--तुम्हारे पास इतनी क्षमता तो है नहीं कि अच्छा काम कर प्रसिद्ध बनो। अच्छा काम करने वाला प्रसिद्ध होता है तो बुरा काम करने वाला भी प्रसिद्ध हो जाता है। पहला मार्ग तुम्हारे लिए असम्भव है। तुम दूसरे मार्ग को चुनो। उस मार्ग के तीन अवलम्बन हैं-घड़ों को फोड़ना, कपड़ों को फाड़ना और गधे की सवारी करना ।
तुम बाजार में जाओ और वहां बिकने के लिए जो घड़े पड़े हैं, उन्हें लाठी से फोड़ डालो। तुम्हारी इस प्रवृत्ति पर लोग एकत्रित होंगे और तुम सारे नगर में प्रसिद्ध हो जाओगे। ___ यदि ऐसा न कर सको तो अपने कपड़े फाड़ डालो, नंगे होकर बाजार से गुजरो । सबकी दृष्टि तुम पर टिकेगी, तुम प्रसिद्ध हो जाओगे। ___ यदि यह भी न कर सको तो गधे की सवारी करो और बीच बाजार से
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