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________________ एकला चलो रे बीमार हो जाता है । बड़ी मुसीबत होती है जब आदमी केवल लेता है, छोड़ता नहीं । जब लेने और छोड़ने का चक्र बराबर चलता है तब सब कुछ ठीक होता है, अन्यथा गड़बड़ी पैदा हो जाती है। प्रवाह स्वच्छ रहता है क्योंकि पानी आता है और आगे सरक जाता है। यह क्रम चलता रहता है। गढ़े में पानी इकट्ठा हो जाता है, उसमें आता ही आता है, उससे निकलता नहीं, तब पानी गंदला बन जाता है। आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि अर्जन के साथ विसर्जन की बात जुड़ी हुई नहीं है। इसीलिए ध्वंसात्मक भावनाएं, हिंसा की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं । जब हिंसात्मक घटनाएं और क्रांतियां घटित होती हैं तब सारा वातावरण विक्षुब्ध हो जाता है । यह मूल नहीं है । यह चिंता की बात नहीं है । यह तो लक्षण है। कोई भी हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है, यह सामाजिक अस्वास्थ्य का लक्षण है । डकैतियां, चोरियां होती हैं, ये भी सामाजिक अस्वास्थ्य का लक्षण हैं, परिणाम हैं। आदमी परिणाम की चिंता करता है, परिणाम को मिटाना चाहता है, कारण की चिंता नहीं करता। इसीलिए अस्वास्थ्य नहीं मिटता । मूल कारण की खोज होनी चाहिए। आज का समाज अर्जन-प्रधान और संग्रह-प्रधान बन गया। उसने विसर्जन और असंग्रह की बात भुला दी। केवल धनवान ही विसर्जन करे, यह बात नहीं है। सबमें विसर्जन की भावना जागनी चाहिए। अर्जन के अनुपात से विसर्जन होता है, तब रचनात्मक दृष्टिकोण आगे बढ़ता है। अधिक आय, अधिक विसर्जन । थोड़ी आय, थोड़ा विसर्जन । रचनात्मक दृष्टिकोण के तीन सूत्र हैं१. स्वार्थ-संयम की क्षमता। २. कर्त्तव्य-बोध और दायित्व-बोध का जागरण । ३. अर्जन के साथ विसर्जन की संयुति । इन तीन सूत्रों के द्वारा हम सामाजिक स्वास्थ्य का अनुमापन कर सकते हैं। जिस समाज में ये तीन सूत्र प्रचलित हैं वह समाज स्वस्थ है, रचनात्मक हैं । जिसमें ये तीन सूत्र प्रचलित नहीं हैं, वह समाज रुग्ण है, ध्वंसात्मक है । रचनात्मक दृष्टिकोण की उपलब्धियां रचनात्मक दृष्टिकोण की अनेक उपलब्धियां हैं। जब समाज का दृष्टिकोण रचनात्मक नहीं होता तब वह इन उपलब्धियों से वंचित रह जाता है। आज का समाज उसका शिकार है । रचनात्मक दृष्टिकोण की पांच उपलब्धियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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