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________________ -१०८ एकला चला रे स्वार्थ के लिए ही करे । यह असीम स्वार्थ समाज के लिए खतरनाक होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति-व्यक्ति में स्वार्थ पर नियमन करने की क्षमता जागे । कर्त्तव्य बोध I रचनात्मक दृष्टिकोण का दूसरा सूत्र है— कर्त्तव्य-बोध । प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्त्तव्य का बोध होना चाहिए। जिस समाज में कर्त्तव्य-बोध नहीं होता, वहां ध्वंस शुरू हो जाता है । प्रत्येक व्यक्ति का अपना कर्तव्य होता है, दायित्व होता है। जहां कर्त्तव्य-बोध और दायित्व बोध होता है, वह समाज स्वस्थ होता है । जब कर्त्तव्य और दायित्व की चेतना लुप्त हो जाती है तब समाज रुग्ण हो जाता है । तालाब भरा, पानी से या दूध से एक राजा के मन में यह कल्पना जागी कि उसे नागरिकों को परीक्षा कर यह जान लेना है कि उनमें कर्त्तव्य-बोध की चेतना जागृत है या नहीं ? वे केवल आदेश और नियन्त्रण का ही पालन करते हैं या उनमें कर्त्तव्य और दायित्व की चेतना भी विकसित है ? यह शाश्वत प्रश्न है । हर शासक के सामने यह प्रश्न रहा है । प्रजा में यदि कोरे नियन्त्रण का ही भय रहता है तो समाज कभी स्वस्थ नहीं रह सकता । जो शासन के सूत्रधार होते हैं, वे सदा यह सोचते रहते हैं कि जनता में आन्तरिक चेतना भी जागे । कर्त्तव्य और - दायित्व की चेतना भी जागे । शासक यह अनुभव करता है कि केवल डंडे के बल पर ही समाज को सम्यक् रूप से नहीं चलाया जा सकता । राजा ने परीक्षा के विषय में मंत्री से परामर्श किया। एक उपाय ढूंढ़ निकाला। दूसरे दिन सारे शहर में यह घोषणा करवा दी गई - 'शहर में जितने भी स्त्री-पुरुष हैं, आज रात्रि का प्रथम प्रहर बीतने से पूर्व, नव-निर्मित - तालाब में एक लोटा दूध का डालें। वहां कोई निरीक्षक नहीं रहेगा, देखने वाला नहीं रहेगा। यह आत्मानुशासन का परीक्षण है । सब कर्त्तव्य का अनुभव करें और एक-एक लोटा दूध तालाब में डालें ।' सबने घोषणा सुनी। एक आदमी के मन में यह विकल्प आया— शहर में हजारों स्त्री-पुरुष हैं । सब दूध डालेंगे । यदि मैं एक लोटा पानी डाल दूंगा तो . क्या अन्तर आएगा, कौन देखेगा ? वह पानी से भरा लोटा लेकर चला और तालाब में डाल आया । जब एक के मन में यह विकल्प उठ सकता है तो दूसरे के मन में क्यों नहीं उठेगा ? अवश्य उठ सकता है । दूसरे आदमी ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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