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________________ १०४ एकला चलो रे सफलता दस-बीस दिनों में नहीं मिल जाती। लम्बे समय के अभ्यास के बाद वह हस्तगत होती है। तीसरी बात है-सातत्य । आदमी लम्बे समय तक एक प्रक्रिया का अभ्यास करता है। किन्तु वह निरन्तर वैसा नहीं करता । आज करता है, दो-चार दिन करता है, फिर दस दिन छोड़ देता है। फिर प्रारम्भ करता है, दो-चार दिन करता है, फिर पांच दिन नहीं करता। ऐसा करने वाला कभी सफल नहीं होता । अभ्यास निरन्तर होना चाहिए, अन्यथा लाभ स्थायी नहीं होगा। श्रद्धा, दीर्घकालिता और सातत्य-ये तीन तथ्य अनिवार्य हैं पुरानी आदत को बदलने के लिए और नयी आदत का निर्माण करने के लिए। इन तीनों के अभाव में न पुरानी आदत बदलती है और न नयी आदत का निर्माण होता है। व्यसन-मुक्ति भी तभी संभव है जब ध्यान में रस आने लगे । रस रस होता है । जब एकाग्रता के रस की अनुभूति होती है तब दूसरे सारे रस फीके पड़ जाते हैं। ध्यान और पदार्थ—ये दो हैं । ध्यान है चेतना के जागरण का बिन्दु और पदार्थ है चेतना के उपयोग का बिन्दु । दोनों की प्रकृति में अन्तर है। एक संस्कृत कवि ने रूपक की भाषा में कहा है-ईख ! तू सुन्दर है, सरस और मधुर है । तेरे में और भी अनेक विशेषताएं हैं, पर एक कमी है । वह यह कि जैसे-जैसे तेरा सेवन किया जाता है, वैसे-वैसे तू नीरस बनता जाता है। __ ईख को चूसने वाले जानते हैं कि प्रारम्भ में वह बहुत मधुर होता है, और चूसते-चूसते छिलका रह जाता है, नीरस रह जाता है। यह सरसता से नीरसता का एक उदाहरण है। प्रत्येक पदार्थ की यही प्रकृति है । भोग की यही प्रकृति है। इसका अतिक्रमण नहीं होता । यह है पदार्थ की प्रकृति । दूसरी है—चेतना की प्रकृति । वह इससे भिन्न है । प्रारम्भ में उसका सेवन नीरस लगता है, किन्तु जैसे-जैसे समय बीतता है, सरसता आती जाती है । जब दीर्घकाल तक निरन्तर उसका सेवन चलता है, ध्यान चलता है, तब उसमें और अधिक सरसता आ जाती है और आदमी उस स्थिति में सब कुछ छोड़ सकता है, किन्तु जागरण की प्रक्रिया को नहीं छोड़ सकता। पदार्थ की और चेतना की प्रकृति सर्वथा भिन्न होती है। ध्यान-प्रक्रिया के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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