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एकला चलो रे 'केचिदज्ञानतो नष्टाः, केचिद् नष्टाः प्रमादतः ।
केचिज्ज्ञानावलेपेन, केचिद् नष्टश्च नाशिताः ॥' बुरे बनने के चार कारण हैं१. अज्ञान । २. प्रमाद । ३. ज्ञान का अहं । ४. बुरे की संगत।
कुछ व्यक्ति अज्ञान के कारण बुराई में फंस जाते हैं, व्यसन में फंस जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं। वे अज्ञानी हैं। बरबादी का दूसरा कारण है प्रमाद । कुछ लोग बुराई को बुराई जानते हैं पर उसका आचरण करते जाते हैं। एक भाई सिगरेट पीता था। उसका स्वास्थ्य गड़बड़ा गया। उसके 'मित्रों ने कहा-तुम सिगरेट पीना छोड़ दो। तुम्हारा स्वास्थ्य बिगड़ता जा है। उसने कहा-क्या मैं नादान हैं ? क्या मैं नहीं जानता ? मैं ग्रेजुएट हं, मूर्ख नहीं हूं। मैं जानता हूं कि स्वास्थ्य खराब होता है, पर मैं इसे छोड़गा नहीं। यह सारा प्रमाद के कारण होता है । लोग जानते हुए भी बुराई को पकड़े रहते हैं।
कुछ लोग ज्ञान के अहं के कारण बिगड़ जाते हैं। उनमें ज्ञान का अहं इतना तीव्र होता है कि वे दूसरे की बात सुनते ही नहीं। वे सोचते हैं-हमें कौन क्या समझाए ? क्या हम दूसरों से कम जानते हैं ? वैसे लोग अपने ही अहं के कारण बुराई में पड़े रहते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
नष्ट होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण है-नष्टश्च नाशिता:-बुरे व्यक्तियों की संगत । कुछ लोग स्वयं बुराई में फंसे रहते हैं और चाहते रहते हैं कि दूसरे भी उनका अनुकरण करें, उस बुराई को सीखें और अपनाएं । जब कोई व्यक्ति शराबी की संगति करता है तो शराबी कहता है-अरे, दो चूंट शराब पीने में नुकसान ही क्या है ? देखो तो सही, चखोगे तब जानोगे कि क्या मजा है शराब में । लोग व्यर्थ ही इसे बुरी मानते हैं, शराब पीना व्यसन बतलाते हैं। आज के समाज में जीने वाला व्यक्ति, आज की सभ्यता और मित्रमंडली में रहने वाला व्यकि मदिरा से कैसे बच सकता है ? शराब में न फंसने वाला व्यक्ति भी इन तर्कों से फंस जाता है और धीरे-धीरे शराब की आदत को पाल लेता है ।
यह नष्ट होने का महत्त्वपूर्ण कारण है। जो बिगड़ चुके हैं वे चाहते हैं
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