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________________ व्यसन मुक्ति कि उनका बहुमत हो, दूसरे भी बिगड़ें और उनका अनुसरण करें । आदमी के बिगड़ने के ये चार कारण हैं । कुछ लोग व्यसनों में फंसना नहीं चाहते, पर इन कारणों से फंस जाते हैं और फिर उनके लिए वहां से निकलना कठिन हो जाता है । की । हम अभी-अभी हमने आचार्य श्री तुलसी के साथ दक्षिण- यात्रा तमिलनाडु में गए । प्रदेश सुन्दर और मनोहारी है । उपज भी बहुत है, पर लोग बहुत गरीब हैं । हमने ऐसे सुन्दर और उपजाऊ प्रदेश में पलने वाली गरीबी का कारण ढूंढा । हमें ज्ञात हुआ कि वहां के लोग बचाना जानते ही नहीं । एक दृष्टि से वे असंग्रही हैं । जो कुछ कमाते हैं, उसे उसी दिन खर्च कर डालते हैं । उनका पूरा पैसा शराब पीने और सिनेमा देखने में खर्च हो जाता है । प्रातः फिर वही हालत रहती है । छोटे-छोटे गांवों में शराब की दुकानें और सिनेमागृह मिलते हैं । सारा पैसा इन्हीं में फूंक दिया जाता है । उनके घरों की हालत बड़ी खराब रहती है । स्त्रियां परेशान और बच्चे भूखे । फिर भी उन आदमियों की यह लत नहीं छूटती । अभी-अभी वहां की महिलाओं ने संगठित रूप से सरकार को आवेदनपत्र दिया था और उसमें मांग की थी कि उनके पतियों को शराब और सिनेमा के शिकंजे से छुड़ाया जाए। उनकी आर्थिक विपन्नता के ये दो कारण हैं। पुरुष नहीं जान पाता कि घर-गृहस्थी को चलाने में स्त्रियों को कितनी कठिनाइयां भुगतनी पड़ती हैं । भारत गरीब देश है । यहां पैदावार कम और आनुपातिक गरीबी है । - अनुपात में आय बहुत कम है । ऐसी स्थिति में इन व्यसनों के सेवन में यदि धन खर्च होता है तो बहुत बड़ी आर्थिक हानि होती है । && वृत्तियां दो प्रकार की होती हैं। एक है मौलिक मनोवृत्ति और दूसरी है अर्जित वृत्ति । आदत मौलिक नहीं होती । वह अर्जित होती है । कोई भी आदमी जन्म से शराबी या जुआरी नहीं होता । ये आदतें धीरे-धीरे अर्जित होती हैं । वे आदमी को पकड़ लेती हैं। एक शराबी से पूछा गया - तुम शराब पीते हो ? उसने उत्तर दिया – पहले तो मैं शराब पीता था, अब शराब मुझे पीती है । यह यथार्थ है । आदमी शराब पीता है, तम्बाकू पीता है । जब वह यह जान जाता है कि शराब और तम्बाकू हानिकारक तत्त्व हैं, तब वह उन्हें छोड़ने का संकल्प करता है । पर समय आने पर सारी आंतें टूटने लगती हैं, नसें फटने लगती हैं और वह शराब भी पी लेता है । अब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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