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एकला चलो रे
सकता है कि या तो मैं ही रहूंगा या प्रकाश ही रहेगा । सर्दी कह दे कि या तो मैं ही रहूंगी या गर्मी ही रहेगी । यह कभी नहीं हो सकता । इस दुनिया में दोनों के लिए अवकाश है । शरीर की गर्मी यदि कह उठे कि शरीर में या तो मैं ही रहूंगी या ठंड ही रहेगी, तो आप सोचें, शरीर का क्या होगा ? आदमी मुर्दा बन जायेगा । आदमी तब तक ही जीवित है जब तक शरीर में गर्मी भी है और सर्दी भी है । उसमें एक संतुलित तापमान है । कोरी गर्मी बढ़ जाए तो आदमी मर जाता है म कोरी सर्दी बढ़ जाए तो भी आदमी मर जाता है ।
इस दुनिया में एक भी शब्द ऐसा नहीं है जिसका प्रतिपक्ष शब्द न हो । जिसका अस्तित्व होता है उसका प्रतिपक्ष भी होता है । प्रत्येक वस्तु का प्रतिपक्ष है | जिसका प्रतिपक्ष न हो वह सत् नहीं होता, उसका अस्तित्व ही नहीं होता । जिस शब्द का प्रतिपक्ष नहीं है तो उसका अर्थ भी नहीं हो सकता । कल्पना करें कि यदि दुनिया से अंधकार मिट जाएगा तो प्रकाश का अर्थ भी समाप्त हो जाएगा । प्रकाश का अर्थ हम तभी समझ सकते हैं जबकि अंधकार का अस्तित्व है, अंधकार हमारे सामने है । हम तभी समझ सकते हैं कि अन्धकार वह होता है जिसमें दिखाई नहीं देता और प्रकाश वह होता है जिसमें दिखाई देता है । यदि चोर समाप्त हो जाए तो साहूकार का अर्थ भी समाप्त हो जाएगा ।
यह संसार विरोधी युगलों का संसार है। सारे जोड़े हैं, युगल हैं और भी विरोधी युगल | सब कुछ द्वन्द्व है । द्वन्द्व के दो अर्थ होते हैं । एक अर्थ - युगल और दूसरा अर्थ है -- लड़ाई, संघर्ष, युद्ध । जो युगल होगा वह विरोधी ही होगा । समान जाति का युगल नहीं होता । स्त्री-पुरुष, नर-मादा, नित्य अनित्य, शाश्वत - अशाश्वते, अंधकार-प्रकाश, सर्दी-गर्मी आदि-आदि युगल हैं ।
हम इस सत्य को मानकर चलें कि इस दुनिया में विरोध रहेगा, भिन्नता रहेगी, प्रतिपक्ष रहेगा । इसे कोई मिटा नहीं सकता । इसमें हमें नये मार्ग की खोज करनी होगी। वह मार्ग होगा सह-अस्तित्व का, समन्वय का । इसका अर्थ है - हम साथ में रह सकें और समन्वय के द्वारा साथ में रह सकें । इसके द्वारा साम्प्रदायिक वैमनस्य, जातीयता की भावना मिट सकती है ।
किसी व्यक्ति में में भावनाएं नहीं होनी चाहिए, किन्तु अधिकारी में तो ये होना ही नहीं चाहिए । यदि अधिकारी में ये होती हैं तो अन्याय घटित हो सकता है । जब-जब किसी राजा या शासक के मन में सांप्रदायिक या जाती
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