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________________ कुटिचर स्यूं दस-दस कदम, दुर्जन स्यूं दो खात। सन्तां ! टलजो दूर स्यूं, शठ स्यूं सौ-सौ हाथ ।।४।। उकतै नहीं, उछलै नहीं, धीरा धीरप धार । सन्तां ! सोनो सुध हुवै, तप-तप चोटां खा र ॥४६॥ ढाल जठीनै जल ढलै, निरणो न्याय निवेड़। सन्तां ! रांटो ही रहै, पंखा बाहिरो पेड़ ॥४७॥ पाप पलीतो पीलियो, पांव पांवणी दार । सन्तां ! राख्यो रह सके, दाबा'र कितीक बार ॥४८॥ अ परसंसक अहितकर, फूलो मती फिजूल । सन्तां ! रहस विचारज्यो, भलो बतासी भूल ॥४६॥ छद्म छिपायो कद छिप, बोयो पेड़ बबूल। सन्तां ! उघड्यां ही सरै, धीठ धकैलै धूल ॥५०॥ भूल करै भायला, भडका जसरी भूख । सन्तां! रसतो ही रुल, चेतो जावै चूक ॥५१॥ जथा जोग जाचो जुगत, मान-तान मनुहार । रीत-रीत रा शोभसी, सन्तां ! मैं सतकार ॥५२॥ यज्ञ-याम-यम-यामिनी, योग, योग्यता, याद । सन्तां! रस खोवै विवस, पडतां पांण प्रमाद ॥५३॥ ठीमरता स्यूं ठहरसी, रतन रत्ती रू रबाब । सन्तां ! रिगटोल्यां सदा, खेमो करै खराब ।।५४॥ लंपट, लोलुप, लालची, लोपै लाज लकीर । रांगा रूंगा साटिया, सन्तां ! सहे न सीर ॥५५॥ वाक् चातुर्य, वदान्यता, विद्या, विनय, विवेक । सन्तां ! राखो रेख नै, अरजित कर आरेक ॥५६॥ संत-चेतावणी ६.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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